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धूमधाम से मनाई गई गुरुनानक देव की 553 वीं प्रकाश पर्व

कटिहार, 08 नवम्बर (हि.स.)। प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को सिख धर्म के प्रथम गुरु गुरुनानक देव की जयंती मनाई जाती है। इसी कड़ी में जिले के बरारी प्रखंड स्थित एतिहासिक गुरूद्वारा भवानीपुर गुरूबाजार काढ़ागोला साहेब में गुरूनानक देवजी महाराज की 553वीं जयंति प्रकाश पर्व पर प्रातः प्रभातफेरी पाँच प्यारो की अगुवाई में निकाली गई। प्रभातफेरी का नेतृत्व हाथों में नंगी तलवार लिए पंजप्यारे कर रहे थे। वहीं इनके पीछे फूलों से सुसज्जित वाहन में पवित्र गुरुग्रंथ साहिब विराजमान थे। जिनके सेवा में ऐतिहासिक गुरुद्वारा भवानीपुर के मुख्य ग्रंथी कर रहे थे। शोभायात्रा में गुरुग्रंथ साहिब के वाहन के गुजरने से पूर्व साफ-सफाई के लिए हाथों में झाड़ू लिए युवक-युवतियों का टोली पंक्तिबद्ध होकर सड़क पर जुटे थे। पीछे-पीछे दूर-दूर तक सैकड़ों की संख्या में महिला-पुरुष सिख श्रद्धालु गुरुवाणी का पाठ व भजन-कीर्तन कर रहे थे। इस अवसर पर बोले सो निहाल सतश्री अकाल की गूंज से आसपास की वातावरण गुंजायमान होत रहा। प्रभातफेरी भवानीपुर गुरुद्वारा से निकलकर बरारी हाट, गुरुबाजार, काढ़ागोला स्टेशन बाजार आदि से गुजरती हुई पुन: गुरुद्वारा पहुंचकर समाप्त हुई। इस दौरान विभिन्न प्रमुख मार्गो व मोहल्ले में श्रद्धालुओं ने पंजप्यारे का श्रद्धानत होकर स्वागत किया व उन पर फूलों की बारिश कर उन्हें शत-शत नमन किया। शोभायात्रा में शामिल श्रद्धालुओं की यंग सिख सोसायटी, स्त्री सत्संग सोसायटी सहित अन्य लोग बरारी हाट, गुरुबाजार, स्टेशन बाजार आदि कई जगहों पर चाय, काफी, शर्बत आदि से सेवा सत्कार में लोग जुटे देखे गए। उल्लेखनीय है कि जिले के बरारी प्रखंड को मिनी पंजाब के रूप में भी जाना जाता है। सिख गुरुओं के चरण रज से यहां की धरती पवित्र रही है। भवानीपुर (लक्ष्मीपुर) के ऐतिहासिक गुरुद्वारा में गुरू गोविद सिंह जी का हस्तलिखित हुक्मनामा का दर्शन करने एवं मत्था टेकने पंजाब सहित देश के अन्य शहरों से हर वर्ष सिख श्रद्धालु प्रकाशोत्सव पर बरारी पहुंचते हैं। कहा जाता है कि आनंदपुर साहिब से गुरू गोविद सिंह ने हस्तलिखित हुक्मनामा भेजा था। गंगा नदी में गुरु ग्रंथ साहिब के अंतध्र्यान होने की कहानी भी यहां से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि छह माह तक गुरु ग्रंथ साहिब गंगा नदी में रहने के बाद भी बाढ़ का पानी उतरने के बाद यथावत स्थिति में मिला था। सिखों के पहले गुरू नानकदेव जी असम जाने के क्रम में गंगा नदी के रास्ते बरारी होकर गुजरे थे। नौंवें गुरू तेगबहादुर जी ने बरारी में अपना पड़ाव डाला था।
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