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हर ओर मची धूम, चटख रंग के दीपों से सजा बाजार

बेगूसराय, 22 अक्टूबर (हि.स.)। रिद्धि-सिद्धि दाता गणपति गणेश और लक्ष्मी की आराधना तथा दीपों के पर्व दीपावली को लेकर हर ओर उमंग छाया हुआ है। व्यापक पैमाने पर दीपावली की तैयारी कर ली गई है, बाजार सज चुके हैं। 22 अक्टूबर को धनतेरस एवं धन्वंतरि जयंती के साथ इस चार दिवसीय पर्वोत्सव की शुरुआत हो जाएगी।

दीपावली को लेकर बाजार में एक ओर रंग बिरंगी लाइटों की लड़ियां सजी हुई है तो दूसरी ओर स्थानीय स्तर पर मिट्टी के बने लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा, चटक रंगों से रंगे मिट्टी के बने दीप और कलश आदि भी सज गए हैं। कुंभकारों ने दीप, कलश, लक्ष्मी-गणेश की प्रतिमा के साथ-साथ बच्चों के घरौंदा सजाने तथा खेलने के लिए भी मिट्टी से विभिन्न चीजें तैयार कर बाजार में सजा दिया है।

शुक्रवार को गांव से लेकर शहर तक का बाजार पूरी तरह से दीपावली में उपयोगी मिट्टी की बनी सामग्री से सज गई है। इस वर्ष कार्तिक अमावस्या 24 अक्टूबर सोमवार को सुख, समृद्धि और वैभव का प्रतीक दीपावली मनाया जा रहा है। मान्यता है कि दीपावली पर विधिपूर्वक लक्ष्मी-गणेश की पूजा करने से जीवन में यश वैभव बना रहता है और धन की कमी दूर होती है।

वैसे तो शारदीय पूर्णिमा के 15वें दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष अमावस्या को दीपावली मनाई जाती है, लेकिन इस वर्ष पूर्णिमा के 14 वें दिन 24 अक्टूबर सोमवार को ही दीपावली मनाई जाएगी। ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र गढ़पुरा के संस्थापक पंडित आशुतोष झा ने बताया कि हिंदू पंचांग में अलग-अलग तिथियों के संदर्भ में निर्णय का विचार किया गया है। अमावस्या तिथि जिस दिन सूर्यास्त के बाद व्यतीत हो रही हो, निशा व्यापिनी हो, उसी दिन अमावस्या तिथि को किया जाने वाला पूजन आदि शास्त्रोचित माना गया है।

मिथिला के विभिन्न पंचांग के अनुसार 24 अक्टूबर को शाम 5 बजकर 16 के बाद अमावस्या तिथि का प्रवेश रहेगा जो कि 25 अक्टूबर को दोपहर बाद 4 बजकर 46 मिनट तक रहेगा। 24 अक्टूबर को शाम एवं रात्रि काल में अमावस्या तिथि व्यतीत होगी, इसलिए शास्त्र सम्मत 24 अक्टूबर को ही दीपावली मनाना उचित है।

इससे पहले 22 अक्टूबर को धनतेरस और धन्वंतरी मनाई जाएगी, धनतेरस पर मां लक्ष्मी के साथ कुबेर देवता और धन्वंतरी की पूजा का विधान है। धनतेरस के दिन सोना, चांदी, बर्तन की खरीदारी करना शुभ माना जाता है। दूसरे दिन 23 अक्टूबर को छोटी दीपावली (कहीं-कहीं काली चौदस के नाम से प्रसिद्ध) मनाई जाएगी। इस दिन घर के बाहर गोबर का दीप जलाने के अलावा मां काली की पूजा होती है। कहा जाता है कि इस दिन उन्होंने नरकासुर को मारा था, इसीलिए इसे नरक चतुर्दशी यानी छोटी दीवाली भी कहा जाता है।

इसके बाद दीपावली की रात को मां लक्ष्मी सभी अपनी कृपा बरसाती है। दीपावली वाले दिन शाम और रात के समय शुभ काल में पूजा का विधान है। कार्तिक अमावस्या की रात देवी लक्ष्मी स्वयं धरती पर जाती हैं और प्रत्येक घर में विचरण करती हैं। जिनमें साफ-सफाई, प्रकाश और विधि-विधान से देवी-देवताओं की पूजा-आराधना और मंत्रों का पाठ होता है, मां लक्ष्मी वहीं पर निवास करने लगती है।

पूजा के दौरान मां लक्ष्मी और गणेश की प्रतिमा पर तिलक लगाएं, उनके समक्ष घी का दीपक जलाएं। दीपक जला कर जल, मौली, गुड़, हल्दी, चावल, फल, अबीर-गुलाल आदि अर्पित करें। इसके बाद देवी सरस्वती, मां काली, श्रीहरि विष्णु और कुबेर की विधि-विधान से पूजा करें। महालक्ष्मी पूजा के बाद तिजोरी, बही-खाते और व्यापारिक उपकरणों की पूजा तथा सबसे अंत में माता लक्ष्मी की आरती जरूर करें। दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इसमें भगवान कृष्ण, गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा का विधान है, गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 10:41 से 12:05 बजे तक है।

दीपावली की अगली सुबह मनाया जाने वाला गोवर्द्धन, गोधन पूजा या अन्नकूट उत्तर भारत के पशुपालकों का बड़ा पर्व है। इस दिन पशुधन को स्नान कराकर उन्हें रंग लगाया जाता है, उनके गले में नई रस्सी डाली जाती है और गुड़-चावल खिलाया जाता है। गाय के गोबर से घर-आंगन लीपने के बाद प्रतीकात्मक रूप से गोबर से ही गोवर्द्धन पर्वत की आकृति बनाकर उसके प्रति श्रद्धा निवेदित की जाती है।

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