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थेवा कला के आभूषणों की पहचान विश्व स्तर तक पहुंची

पुणे, 3 फरवरी (हि.स.)। स्वर्ण आभूषणों पर उकेरी जाने वाली चार सौ वर्ष पुरानी थेवा कला जो राजस्थान के प्रतापगढ़ के कुछ इने-गिने स्वर्णकारों तक सीमित रह गई थी, उस कला को इन दिनों प्रतापगढ़ की जाई जन्मी प्रविता कटारिया महाराष्ट्र के पुणे शहर में लाकर स्थापित कर चुकी हैं। इस कला को उन्होंने व्यवसाय का स्वरूप देकर देश के विभिन्न प्रांतों एवं विदेशों तक पहुंचा कर इस कला को विस्तार दिया है। वर्तमान में सभी समाज के परिवार इस कला के आभूषणों को खरीदने में गर्व महसूस करते हैं। यही कारण है कि अब देश की कई ज्वेलरी डिजाइनिंग संस्थानों की इस कला के प्रति रुचि बढ़ने लगी है। इस कला को सीखने वालों की संख्या में भी जबरदस्त इजाफा हुआ है। प्रविता कटारिया बताती हैं कि इस कला के कारीगरों को 9 बार राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। यही बड़ा कारण रहा कि इस कला के प्रति उनमें आकर्षण पैदा हुआ और उन्होंने थेवा कला के आभूषणों को दिल्ली में प्रदर्शनी के रूप में प्रस्तुत किया तो उन्हें पहली बार में ही हजारों की कीमत के आभूषण बिकने के साथ दर्जनों सेट्स के आर्डर मिल गए। तभी से उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा ओर प्रदर्शनी और ईमेल मार्केटिंग के जरिए उत्पादों की बिक्री बढ़ा दी। 2013 में पुणे से ऑनलाइन वेबसाइट लांच की और थेवा आभूषणों को देश-विदेश की कई जानी-मानी हस्तियों तक पहुंचाया। हाल ही में कपिल शर्मा शो के दौरान कई बड़ी हस्तियों ने इस कला की जी खोलकर प्रशंसा की है। थेवा कला के अलावा प्रविता ने ज्वेलरी के अलावा राजस्थान की मीनाकारी ज्वैलरी को पेश किया उसे भी मार्केट में बहुत पसंद किया गया। साथ ही मार्बल, जेमस्टोन लकड़ी और मेटल हस्तशिल्प के उत्पादों की ऑनलाइन वेबसाइट के द्वारा बिक्री शुरू की। वर्तमान में इनके प्रोडक्ट रेंज में करीब दो हजार हस्तशिल्प उत्पाद उपलब्ध है जिनमे वेडिंग गिफ्ट, होम डेकोर, कारपोरेट गिफ्ट की एक विस्तृत श्रृंखला तैयार हो चुकी है। अब राजस्थान के हस्तशिल्प के उत्पादों को विश्व स्तर पर उपलब्ध करने के साथ ही हस्तशिल्प कारीगरों के लिए भी रोजगार के नए अवसर उपलब्ध करवा रहे हैं। विस्तार की योजनाएं प्रविता कटारिया जल्द ही कई शहरों में फ्रेंचाइजी नेटवर्क के माध्यम से इस कला का विस्तार करने की योजना बना चुकी है। उनके इस कार्य में उनके पति नितेश एवं दोनों बेटियो का बड़ा सहयोग है। डिजिटल और ऑनलाइन मार्केटिंग का कार्य देख रहे हैं। विशेष जोर अमेरिका, सिंगापुर, मिडिल ईस्ट, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में इस कला के आभूषण एवं अन्य हस्तशिल्प की नायाब वस्तुएं एक्सपोर्ट पर रहेगा। सरकार से काफी अपेक्षाएं बातचीत में कविता ने बताया कि आश्चर्य की बात है कि देश में कृषि के बाद हस्तशिल्प सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला सेक्टर है। लगभग ढाई करोड़ लोग प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से इस सेक्टर से जुड़े हैं। हस्तशिल्प सेक्टर में असीम संभावनाएं हैं और सरकार समय रहते ध्यान दें तो यह सेक्टर उचाइयां छू सकता है। ऑनलाइन बिजनेस से एक्सपोर्ट मार्केट को बढ़ाया जा सकता है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन जैसे संस्थानों और प्राइवेट पब्लिक की भागीदारी से इस सेक्टर को नई दिशा मिल सकती है।
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