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Article- जब पर्दे के प्यार को सच्चा समझ बैठे दिलीप कुमार के पिता

अजय कुमार शर्मा फिल्म मेला (1948) की कहानी का सूत्र नौशाद को लखनऊ में नेहरू जी से बातचीत करते हुए मिला था। विभाजन के दौरान दरगाह के आसपास जो बदलाव हुए थे उन पर जब वह नेहरू जी को बता रहे थे। तभी नेहरू जी ने कहा था," बेटे, यह दुनिया एक मेला ही तो है।" बस इस एक जुमले में नौशाद को कहानी का बीज मिल गया और उसके जरिए उन्होंने कहानी का ढांचा बनाना शुरू कर दिया। उस दौर में निर्देशक एस. यू. सन्नी साहब जे.बी. एच.वाडिया के मकान में किराए पर रहते थे । सन्नी साहब के घर पर इस कहानी को सुनाने के दौरान ही गीतकार शकील बदायूनी और कहानीकार और संवाद लेखक आजम बाजीदपुरी की दिलचस्पी भी इस कहानी में बढ़ी। जे.बी. एच.वाडिया की बेगम साहिबा इला वाडिया ने भी इसमें रुचि ली और इस तरह यह तय किया गया कि इस पर एक फिल्म बनाई जाए। दिलीप कुमार को इसकी कहानी कार में फिल्मिस्तान स्टूडियो जाते हुए एस.यू. सन्नी साहब ने सुनाई। जब वे स्टूडियो उतरे तो वहां मेला फिल्म का टाइटल गीत बजाया जा रहा था। तब तक उसके फिल्मांकन को लेकर निर्देशक सन्नी जी की जो कल्पना थी उसे दिलीप कुमार ने खासा बोरियत भरा और घिसा- पिटा पाया। इस फिल्म निर्माण के बारे में अपनी आत्मकथा में लिखते हुए उन्होंने लिखा है कि इस अधूरी सी कहानी को सही जामा पहनाने में उन्हें भगवती चरण वर्मा, नरेंद्र शर्मा, ज्ञान मुखर्जी और नवेंदु घोष जैसे धुरंधर लेखकों के साथ फिल्म की कहानियों पर चर्चा करने का जो मौका मिला था, वह बेहद काम आया और उसका फायदा उठाते हुए कहानी में अनेक सुधार किए गए जिससे कहानी में ज्यादा गहराई आ गई और वह मर्मस्पर्शी और विश्वसनीय बन गई साथ ही कलाकारों की भूमिकाएं भी ज्यादा संवेदनशील और मार्मिक बन गई। अक्टूबर 1948 को मुंबई के एक्सल्सियर थियेटर में मेला फिल्म रिलीज हुई। दिलीप कुमार और नरगिस की यह पहली फिल्म थी जिसमें उन्होंने एकसाथ काम किया था। दिलीप कुमार को मुकेश की आवाज दी गई थी और शमशाद बेगम के गाए गीतों को पर्दे पर नरगिस ने साकार किया था। फिल्म सुपरहिट हुई । इसके हिट हो जाने के बाद इस फिल्म से संबंधित एक रोचक वाकया दिलीप कुमार ने अपनी आत्मकथा में लिखा है । मेला फिल्म के दौरान उनकी मां जीवित थीं और उनके फिल्मी करियर को लेकर उनके पिता आगा की नाराजगी भी लगभग दूर हो चुकी थी। यह पहली फिल्म थी जिसे देखने उनके पिता पहली बार सिनेमा हॉल में गए थे। उनसे यह फिल्म देखने का इसरार संगीत निर्देशक नौशाद ने किया था। फिल्म देखने उनके चाचा उमर और उनके एक दोस्त मैटिनी शो में गए थे। उस दिन दिलीप कुमार घर जल्दी लौट आए थे, क्योंकि उन्हें अपनी मां को कहीं डॉक्टर के पास दिखाने ले जाना था। जब दिलीप साहब घर पहुंचे तो पिता आगा वहां चाचा उमर के साथ बैठे हुए थे और उनके चेहरे पर शरारत भरी मुस्कान थी। दिलीप कुमार ने उनको सलाम किया तो उनके चाचा उमर ने उन्हें अपने पिता के पास बैठने का इशारा किया। फिर चाचा ने बताया कि वह लोग मेला फिल्म देखकर आ रहे हैं और यह देखकर हैरान थे कि इतने सारे लोग टिकट खरीद कर हॉल में जमा हो गए थे और हाल खचाखच भर गया था। उन्होंने कहा कि उन्हें बड़ा मजा आया और अपनी आंखों पर यकीन नहीं हुआ कि मैं सचमुच उनके सामने पर मौजूद था और इतना अलग तरह का व्यवहार कर रहा था। इसके बाद चाचा ने उनसे पूछा कि लड़कियों से शर्माने वाला युसूफ मतलब दिलीप कुमार कहां गया? उन्होंने आगा की तरफ देखा। वह किसी गहरी सोच में डूबे थे। कुछ देर बाद उनके पिता आगा ने उनकी आंखों में झांकते हुए बहुत गंभीर अंदाज में कहा, कि अगर तुम सचमुच ही उस लड़की से शादी करना चाहते हो तो मैं उसके मां-बाप से बात करूं। मुझे बस इतना बता दो कि वह है कौन? तुम्हें इतना दुखी होने की जरूरत नहीं है।" कुछ पल तो दिलीप कुमार को समझ नहीं आया कि वह क्या कह रहे हैं। फिर उन्हें अचानक यह बात समझ में आई कि वे फिल्म की हीरोइन नरगिस की बात कर रहे थे। उनके पिता परदे के उनके प्यार को सच समझ बैठे थे। उन्होंने पहली बार कोई फिल्म देखी थी इसलिए कल्पना की दुनिया और असली जिंदगी में कोई फर्क नहीं कर पा रहे थे। लेकिन मैं यह भी जानता था कि इस गलतफहमी को फौरन दूर करना चाहिए ताकि वे सचमुच ही नरगिस के घर न जा पहुंचे । चलते-चलते यह फिल्म दिलीप कुमार को दो अन्य बातों के लिए भी याद रही। इस फिल्म के जरिए ही नौशाद और नरगिस के साथ उनकी अटूट दोस्ती की शुरुआत हुई। नरगिस के साथ उनकी दोस्ती बड़ी बेतकल्लुफ सी थी। उन्होंने लिखा है ऐसा लगता था जैसे हम दो दोस्त या सहेलियां हों जिनमें मर्द और औरत को कोई फर्क न हो। बाद में नरगिस की मां जद्दनबाई, उनकी मां और बहन सकीना की भीअच्छी दोस्त बन गईं और नरगिस अक्सर उनके घर पर आती-जाती रहती थी। जब तक आगा जी को भी यह बात समझ में आ गई थी कि नरगिस पर्दे पर मेरे साथ प्यार का नाटक करती थी और असली जिंदगी में हमारे बीच साफ-सुथरी और पाक दोस्ती थी।
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