Logo
Header
img

व्यक्ति नहीं, विचार का नाम दत्तोपंत ठेंगड़ी

डॉ. राघवेंद्र शर्मा


भारतीय सामाजिक एकता को अक्षुण्ण बनाए रखने और विदेशी षड्यंत्र से देश को बचाए रखने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति जितनी भी कृतज्ञता ज्ञापित की जाए, कम है। क्योंकि इस संगठन ने हमें एक रहना सिखाया और राष्ट्रीयता की विचारधारा से जन-जन को अभिमंत्रित करने हेतु इतनी महान विभूतियां प्रदान कीं, जिन्होंने अपने देश प्रेम और त्याग तपस्या के माध्यम से काल के कपाल पर अमिट छाप छोड़ने में सफलता पाई है। ऐसी महान विभूतियों में से एक नाम स्वर्गीय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी का है। दत्तोपंत ठेंगड़ी शुरू से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े रहे और वहीं रहकर उन्होंने संघ के संस्थापक श्री केशव बलिराम हेडगेवार, परम पूज्य गुरुजी और श्री मोरोपंत पिंगले जैसे महान मार्गदर्शकों का सानिध्य प्राप्त किया। यहीं रह कर आपने राष्ट्रीयता, हिंदुत्व, भारतीय संस्कृति और देश की एकता अखंडता के प्रति समर्पण का भाव सीखा और हमेशा के लिए राष्ट्र सेवा को समर्पित हो गए।

यह तो सभी जानते हैं कि ठेंगड़ी जी भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ और स्वदेशी जागरण मंच जैसे बेहद व्यापक और प्रभावशाली संगठनों के संस्थापक रहे। इसके अलावा उन्होंने संघ के अनेक अनुषांगिक संगठनों के ताने-बाने बुने और संघ कार्य को देश के विभिन्न प्रांतों में रहकर व्यापकता प्रदान की। इनमें केरल, असम, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश ऐसे राज्य रहे जिन्हें दत्तोपंत ठेंगड़ी जी का सर्वाधिक समय तक मार्गदर्शन प्राप्त होता रहा। इस दौरान जब कांग्रेसी षड्यंत्रों के चलते संघ पर प्रतिबंध लगा तो ठेंगड़ी जी ने इसका घोर विरोध किया तथा इस मसले पर देशभर में व्यापक समर्थन प्राप्त किया। फलस्वरूप तत्कालीन कांग्रेस सरकार को अपने दुराग्रह पूर्ण कदमों को वापस लेना पड़ा।

इस बीच वामपंथी और कांग्रेसी विचारधारा पर चल रहे छात्र संगठनों की दिग्भ्रमित नीतियां विद्यार्थियों को उनके अधिकारों व दायित्व को लेकर जागरूक करने में असफल होना शुरू हो चुकी थी, तो संघ में एक ऐसे विद्यार्थी संगठन को खड़ा करने का विचार आया, जिसके माध्यम से विद्यार्थियों को उनके अधिकारों और दायित्वों से अवगत तो कराया ही जाए बल्कि उन्हें राष्ट्र सर्वोपरि की भावना से भी अभिमंत्रित किया जा सके। तब उनकी संलग्नता अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना में बेहद काम आई। जिसमें रहकर उन्होंने अनेक दायित्व भी संभाले। उनके कार्यकाल में इस संगठन में अनेक नवाचार हुए जो विद्यार्थियों के बहुत काम आए।

बगैर तोड़फोड़ और विकास विरोधी हड़तालों के भारतीय मजदूरों का अधिकतम भला कैसे किया जाए, इस पर भी संघ में विचार हुआ तो सवाल यह उठा कि इस पुनीत कार्य के लिए अनुभव कहां से लाएं। तब गुरुजी की सहमति पर श्री ठेंगड़ी इंटक में गए और वहां से अनुभव प्राप्त कर मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में भारतीय मजदूर संघ का गठन किया। इस संगठन को केंद्रीय कामगार संस्था का दर्जा दिया गया। आज मजदूरों और कर्मचारियों के हितों के लिए काम करने वाले इस संगठन से करोड़ों लोग जुड़े हुए हैं। यह इसकी व्यापकता का प्रमाण ही है कि भारतीय मजदूर संघ और उसके मार्गदर्शन में संचालित विभिन्न संगठनों की कार्यप्रणाली अन्य विचारधाराओं के तहत संचालित संगठनों के लिए चुनौती बने हुए हैं।

कालांतर में आप हिन्दुस्थान समाचार और जनसंघ से भी जुड़े और इनकी राष्ट्रहितैषी कार्यप्रणाली को अधिक प्रभावी बनाया। स्वर्गीय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी दो बार राज्यसभा में निर्वाचित होकर पहुंचे। तब उन्होंने देश के अधिकांश संगठनों और उनके नेताओं से प्रगाढ़ता बढ़ाई। उनके सर्वदलीय मधुर संबंध तब काम में आए जब कांग्रेस सरकार ने देश पर आपातकाल थोपा। उस समय ठेंगड़ी जी ऐसी महान विभूतियों में शामिल रहे जो विभिन्न विचारधाराओं के दलों और नेताओं को भारतीय स्वतंत्रता की एक और लड़ाई के लिए एकजुट कर रहे थे। बाद में राजस्थान के कोटा में आपके ही सद् प्रयासों से भारतीय किसान संघ के गठन की घोषणा हुई। यह संगठन भी उनकी त्याग-तपस्या के चलते देश के अधिकांश क्षेत्रों में व्यापक होता चला गया। अपने जीवन में उन्होंने किसानों, मजदूरों और कर्मचारियों की ओर से कुछ ऐसे नारे गढ़े जो अधिकारों के साथ-साथ राष्ट्रहित की भावना को भी प्रदर्शित करते हैं। उदाहरण के लिए-

देश के हम भंडार भरेंगे।

लेकिन कीमत पूरी लेंगे।।

राष्ट्रहित में करेंगे काम।

काम के लेंगे पूरे दाम।।

साथ में बताते चलें कि ठेंगड़ी जी ने डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की जन्मशती पर पुणे की जमीन से सामाजिक समरसता मंच की स्थापना की। नागपुर की पुण्यभूमि पर सर्वपंथ समादर मंच और स्वदेशी जागरण मंच की स्थापना की गई। स्वदेशी जागरण मंच ने विश्व व्यापार संगठन के भारत विरोधी षड्यंत्रों का जमकर विरोध किया। गैट और डंकल प्रस्ताव की सड़कों पर मुखालफत की गई। यह बात और है तब की कांग्रेस सरकार ने उक्त मसौदे पर हस्ताक्षर करके विदेशी षड्यंत्रों के सामने घुटने टेक दिए और देश को विदेशी उत्पादों का बाजार बना दिया। बेहद व्यथित हृदय से लिखना पड़ रहा है कि आज ही के दिन 14 अक्टूबर 2004 को राजऋषि दत्तोपंत ठेंगड़ी जी पुणे में देहावसान को प्राप्त हुए। किंतु वे अपने राष्ट्रहितैषी कृतित्व के माध्यम से सदैव ही भारतीयों के हृदय में स्पंदन बनकर धड़कते रहेंगे।

Top