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राम मंदिर के लिए स्वेच्छा से कारसेवा करने पहुंच गए थे राम किंकर सिंह

बलिया, 09 जनवरी (हि.स.)। अयोध्या में प्रभु श्रीराम विराजने जा रहे हैं। उनका राम मंदिर जैसे-जैसे भव्य आकार लेता जा रहा है भृगु क्षेत्र में भी खुशी की लहर है। पांच सौ सालों के इस संघर्ष में अपनी गिलहरी की भांति भूमिका को याद कर कइयों के आंखों में खुशी के भी आंसू हैं। उन्हीं में से एक हैं राम किंकर सिंह जो युवावस्था में बिना किसी के बुलाए कारसेवा करने अयोध्या पहुंच गए थे। 1984 में जब अयोध्या में विवादित ढांचे का ताला खोला गया था तो शहर के हरपुर निवासी पच्चीस साल के नौजवान राम किंकर सिंह तब केंद्रीय उपभोक्ता भंडार में बदायूं में कार्यरत थे। उनकी पत्नी वहीं बीटीसी कर ही थीं। 184 में ताला खुला तो घर-घर दीप जलाने थे। तब रामकिंकर सिंह दीप प्रज्ज्वलित करने अयोध्या पहुंच गए। फिर 1990 में अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा गरमाया तो राम किंकर सिंह केंद्रीय उपभोक्ता भंडार में बलिया में ही थे। रोज अखबार में राम मंदिर की खबर पढ़ते थे कि परिंदा भी पर नहीं मार पायेगा। 

यह बात उन्हें कचोट जाती थी। रामकिंकर सिंह ने मंगलवार को उड़ दौर को याद करते हुए बताया कि खबरें पढ़कर मन उद्वेलित होता था। मन में आया कि राम काज में गिलहरी का भी छोटा सा प्रयास था। क्यों न हम भी अपने जीवन को सार्थक करें। 18 अक्टूबर 1990 को शहर में ही एक स्थान पर गए थे। वहीं कुछ रामभक्तों से चर्चा में कहा कि अयोध्या जाना चाहते हैं। 19 अक्टूबर 1990 को तत्कालीन सप्लाई इंस्पेक्टर ने खबर दी कि अयोध्या जाना चाहते हैं तो भेजवा दूंगा। फिर अयोध्या वाली ट्रेन पकड़ चल दिया और भोर में शाहगंज उतरे। तभी देखा कि अयोध्या जाने वाली पटरी पर मिट्टी डाल दी गई थी। भीड़ पैदल ही चल दी। मैं भी साथ में चल दिया। जिधर जिस गांव में जाते, पूरी श्रद्धा से स्वागत होता था। किस्सा सुनाया कि सुल्तानपुर जिले के में अखण्डनगर थाना के एक गांव से गुजरते वक्त गांव वाले दौड़े और गले लगाया। उस वक्त बलिया के ही ब्यासी गांव के प्रेम सिंह भी थे। राम किंकर सिंह बताते हैं कि एक 90 साल की माता ने पांच रुपये देकर पैर छुए तो प्रेम सिंह रोने लगे। कोई मकई का भूजा खिलाया। कोई दही दिया। वहां से चले तो बाजार में चारों तरफ से हम घेर लिए गए। हम जय श्रीराम का नारा लगाने लगे। तभी एक दरोगा ने डंडे तान कर जय श्रीराम के नारे लगाने पर एतराज जताया। हमें पकड़ कर थाने ले गए।

 कई और लोगों को पकड़ कर ले आये। इसके बाद वहां के एसपी आए और पूछा कि दरोगा पर हाथ क्यों चलाया। मैं कहने लगा जय श्रीराम बोलना अपराध है ? हालांकि बाद में हमें बस में बैठाकर जेल ले गए। तब जेल के अंदर बीस हजार कारसेवक थे। टेंट में हमें भी रुकवाया गया। जेल में ही कारसेवकों की बैठक होती थी। उन्होंने कहा कि 20 अक्टूबर से 29 अक्टूबर 1990 तक जेल में रहे। इस दौरान बलिया का ही एक लड़का राजकुमार नाम का जेल में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का कब्र बनाया। उसने बाल भी मुड़वा लिया था। उधर, सुल्तानपुर के लोग खाने-पीने की चीजें लाते थे। जेल में तत्कालीन प्रधानमंत्री बीपी सिंह की अर्थी ले जाई जाती थी। कोई कारसेवक बीपी सिंह की पत्नी बन कर रोता था। एक दिन जेल के दो फाटक तोड़ दिए गए। अगले दिन कुछ उत्साही लोग मेन गेट तोड़ने लगे। पगली घन्टी बजी। कई लोग पीटें गए। 29 अक्टूबर को कई बसों में भर कर हमें नैनी जेल भेजा जाने लगा। बस में भी जय श्रीराम के नारे लगे। नौ बजे रात नैनी जेल पहुंचे। फिर अचानक वहां से बरेली ले जाने लगे। सुबह एक नदी के पास रोक कर दैनिक क्रिया करने के लिए उतारा गया। हम चार लोग जिसमें एक महाराष्ट्र, दो हरियाणा और मैं वहां से भाग गए। वहां से पूरे दिन पूरी रात पैदल चले। 


चार बजे भोर में अयोध्या पहुंचे। 30 अक्टूबर को तय हुआ कि जिसके दरवाजे पर लाल बल्ब जल रहा होगा वहीं रुक जाएंगे। हमने एक घर की कुंडी बजाई तो घर वालों ने पैर धोया। उसी घर में खाया-पिया गया। फिर हम सो गए। तब तक सुबह सात बजे लगा कि अयोध्या में कुछ बड़ा हो गया है। हर घर में घण्टा बजने लगा। हम लोग मंदिर की ओर दौड़ पड़े। हनुमानगढ़ी की ओर बढ़े तो फोर्स ने रोक लिया। वहीं एक बस थी उसमें चाभी लगी थी। एक नागा बाबा चढ़ गए और बस स्टार्ट कर हनुमानगढ़ी की ओर लगी बैरिकेडिंग तोड़ दिया। हनुमानगढ़ी के पास हमें पुलिस ने खूब मारा। जब मैं होश आया तो मैं खुद को मनिरामदास छावनी के अस्पताल में पाया। दो दिन बाद दो नवंबर को पता लगा कि कोठारी बंधु मारे गए। मैं घर लौट चला। बस नहीं थी फिर वापस अयोध्या लौटे तो गिरफ्तार किया गया। फिर सुल्तानपुर जेल में ले गए। नौ नवंबर को जो जिस जिले का था। उसे वहां भेज दिया गया। इसके बाद राम मंदिर के आंदोलन ने जोर पकड़ा। 1992 के दिसम्बर माह में जानकारी हुई कि कारसेवकों की जुटान है। मैं पांच दिसम्बर को अयोध्या पहुंचा। मनीरामदास छावनी पहुंचे। छह दिसम्बर की सुबह को सबको सरयू से एक-एक मुट्ठी बालू लेकर जन्मभूमि के पास गड्ढे को पाटने के लिए कहा गया।

 मैं भी सरयू से बालू लेकर चला तो कथाकुंज में सबको बैठा दिया गया। वहीं अशोक सिंघल थे। सुबह साढ़े दस बजे लालकृष्ण आडवाणी, महंत अवैद्यनाथ, उमा भारती व ऋतंभरा आदि लोग आये। भाषण होने लगा। हल्ला हुआ कि पुलिस गोली नहीं चलाएगी। नारेबाजी के बीच सब उद्वेलित हो गए। दिन में करीब 12 बजे कुछ लोग गुम्बद पर दिखे। बस मैं उधर ही चल दिया। मैं भी ढांचा की पाइप को तोड़ने लगा। तभी मुझे चोट भी लगी। एक गुम्बद गिरा तो हमें एक ईंट हाथ लगी। उसे लेकर मनीरामदास छावनी में आ गए। वहां आराम किया। चार बजे तक तीनों गुम्बद ढह गया। मन में संतुष्टि का भाव लिए वहां से वापस चल दिया। राम किंकर सिंह ये सब बातें बताते हुए आंखों में आंसू भर लेते हैं। उन्होंने कहा कि भव्य राम मंदिर के लिए 51 हजार दान दिए हैं। छह दिसम्बर को लायी गई ईंट घर के मंदिर में अब भी रखे हैं। अब जैसे-जैसे राम मंदिर की भव्य तस्वीरें सामने आ रही हैं। मन श्रद्धा से भर जा रहा है। लगता है कि मैं भी गिलहरी की तरह धन्य हो गया।
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