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देवस्नान चंदन जात्रा पूजा विधान के साथ बस्तर गोंचा पर्व का हुआ शुभारंभ

जगदलपुर, 22 जून (हि.स.)। रियासत कालीन बस्तर गोंचा पर्व में देवस्नान चंदन जात्रा पूजा विधान आज शनिवार 22 जून को शुभ मुहर्त में 12.30 बजे से प्रारंभ हुआ। इससे पूर्व 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के ब्राह्मणों द्वारा भगवान शालिग्राम को ग्राम आसना से श्रीजगन्नाथ मंदिर लाने की परंपरा के निर्वहन के बाद इंद्रावती नदी के महादेव घाट से पवित्र जल की पूजा उपरांत श्रीजगन्नाथ मंदिर लाया गया। तत्पश्चात शताब्दियों पुरानी परंपरानुसार भगवान शालीग्राम का पंचामृत, चंदन एवं इंद्रावती नदी के पवित्र जल से अभिषेक कर विधि-विधान से पूजा संपन्न किया गया। इससे पूर्व प्रभु जगन्नाथ स्वामी, माता सुभद्रा एवं बलभद्र के विग्रहों काे श्रीमंदिर के गर्भगृह में पूजा विधन के साथ आसन से उतारकर नीचे स्थापित कर देवस्नान चंदन जात्रा पूजा विधान संपन्न किया जाकर भगवान के 22 विग्रहों को मुक्ति मंडप में स्थापित किया किया गया।

प्रभु जगन्नाथ स्वामी, माता सुभद्रा एवं बलभद्र के विग्रहों को मुक्ति मंडप में स्थापित किये जाने के साथ ही भगवान का अनसर काल प्रारंभ होकर 5 जुलाई तक जारी रहेगा, इस दौरान प्रभु जगन्नाथ स्वामी, माता सुभद्रा एवं बलभद्र का दर्शन वर्जित होगा, 6 जुलाई को नेत्रोत्सव पूजा विधान के साथ प्रभु जगन्नाथ स्वामी, माता सुभद्रा एवं बलभद्र के दर्शन लाभ श्रृद्धालुओं को श्रीमंदिर के बाहर होगें।

360 घर आरण्यक ब्राम्हण समाज के अध्यक्ष ईश्वर नाथ खम्बारी ने बताया कि आज बस्तर गोंचा पर्व के 616 वर्षो की ऐतिहासिक रियासत कालीन परम्परानुसार देवस्नान चंदन जात्रा पूजा विधान संपन्न किया गया। इसके साथ ही बस्तर गोंचा पर्व प्रारंभ हो गया है। उन्होने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चंदन जात्रा पूजा विधान के पश्चात भगवान जगन्नाथ का 15 दिवसीय अनसर काल की अवधि होती है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ अस्वस्थ होते हैं, तथा भगवान के अस्वथता के हालात में दर्शन वर्जित होते हैं। भगवान जगन्नाथ के स्वास्थ्य लाभ के लिए औषधियुक्त भोग का अर्पण कर भगवान जगन्नाथ की सेवा 15 दिनों के अनसर काल में 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के सेवादारों एवं पंडितों के द्वारा किया जायेगा। औषधियुक्त भोग के अर्पण के पश्चात इसे श्रधालुओं में प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है। विशेष औषधियुक्त प्रसाद का पूण्य लाभ श्रद्धालु अनसर काल के दौरान जगन्नाथ मंदिर में पहुचकर प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन दर्शन वर्जित होगा। इसके उपरांत 6 जुलाई को नेत्रोत्सव पूजा विधान के साथ प्रभु जगन्नाथ के दर्शन होंगे, 7 जुलाई को श्रीगोंचा रथ यात्रा पूजा विधान के साथ ही प्रभु जगन्नाथ स्वामी जनकपुरी सिरहासार भवन में नौ दिनों तक श्रृद्धालुओं के दर्शनार्थ स्थापित होगें, इस दौरान समस्त श्रृद्धालुओं को पुण्यलाभ का पावन अवसर प्राप्त होगा।

बस्तर गोंचा समिति के अध्यक्ष विवेक पांडे ने बताया कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देवस्नान चंदन जात्रा पूजा विधान में भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा एवं बलभद्र का चंदन से अभिषेक होने पर चंदन के ठंडे तासीर के कारण वे अस्वस्थ हो जाते हैं। भगवान जगन्नाथ, माता सुभद्रा एवं बलभद्र के अस्वथता के इस समय को अनसर काल कहा जाता है। अनसर काल के दौरान भगवान के अस्वस्थता की स्थिति में दर्शन करना अनुचित माना गया है, इस वजह से दर्शन वर्जित होते हैं। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि भगवान जगन्नाथ अपने श्रधालुओं के वर्ष भर स्वस्थता के आशीष हेतु स्वयं अस्वस्थ होकर सभी के स्वास्थ्य के लिए औषधियुक्त भोग ग्रहण कर औषधियुक्त प्रसाद उपलब्ध करवाते हैं। जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु स्वरूप जगन्नाथ स्वामी विश्व के समस्त श्रद्धालुओं के स्वस्थता के लिए आयुर्वेद का औषधियुक्त प्रसाद वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार मौसम के परिवर्तन के साथ स्वास्थ्य के लिए प्रसाद के रूप में लाभदायी सिद्ध होता है, अर्थात आस्था के प्रसादरूपी औषधि की उपलब्धता हमारी प्राचीन आयुर्वेद की व्यवस्था के आधार को प्रासांगिक बना देता है। ऐसा महात्म्य है, औसाधियुक्त भोग एवं औषधियुक्त प्रसाद का जिसमें अध्यात्मिक-वैज्ञानिक आयाम समाहित है।

उन्होने बताया कि भगवान जगन्नाथ के अनसर काल मे दर्शन वर्जित होने के संबंध में जानने के लिए अनसर का साब्दिक अर्थ एवं इसके भावार्थ को समझना होगा। अनसर का साब्दिक अर्थ अन अवसर = अनवसर होता है। अनवसर का भावार्थ उचित अवसर का नहीं होना कहलाता है। अर्थात भगवान जगन्नाथ के 15 दिवसीय अनसर काल मे भगवान जगन्नाथ भक्तो के स्वास्थ्य के लिए स्वयं बीमार पड़ते है, बीमार होने पर भगवान जगन्नाथ अस्त-व्यस्त अवस्था मे रहते हैं, ऐसी अवस्था मे जगत के पालनकर्ता के दर्शन को शास्त्रो व पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दोषपूर्ण माना गया है। इसीलिए भगवान जगन्नाथ के दर्शन 15 दिनों तक अनसर काल के दौरान वर्जित होता है।

स दौरान समाज के पाणिग्राही राधाकांत पाणिग्राही, समाज के पाढ़ी उमाशंकर पाढ़ी, बस्तर गोंचा महापर्व समिति के अध्यक्ष विवेक पांडे, रविंद्र पांडे, सुदर्शन पाणिग्राही, आमाराम जोशी, अंनत प्रसाद पांडे, नरेंद्र पाणिग्राही, राकेश पांडे, गजेंद्र पाणिग्राही, चिंतामणि पांडे, डिलेश्वर पांडे, मिथलेश पाणिग्राही, मिनेश पाणिग्राही, देवशंकर पंडा, बनमाली पानीग्राही, विमल पांडे, परमानंद पांडे, बिम्बाधार पांडे, सोहन पांडे, आशा आचार्य, डाकेश्वरी पांडे, गिरजा पांडे, ओंकार पांडे, भालचन्द्र मंडन, आर. एन. पांडे, मिनकेतन पाणिग्राही, बद्रीनाथ जोशी, आशू आचार्य, वैभव पांडें, प्रदीप पाढ़ी, हर्ष पानीग्राही, एवं बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।


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