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सिमरिया कल्पवास मेला में दिख रही है भक्त और भगवान की एकाग्रता

बेगूसराय, 13 अक्टूबर (हि.स.)। मिथिलांचल के सुप्रसिद्ध गंगा तट सिमरिया धाम में आयोजित राजकीय कल्पवास मेला का पांच दिन बीतने के बावजूद प्रशासन भले ही सभी व्यवस्था पूरी करने में नाकाम हो। लेकिन इसके बावजूद कल्पवासी धर्म और अध्यात्म की कथा में लगातार गोते लगा रहे हैं।

सिमरिया कल्पवास के क्षेत्र में 25 से अधिक जगहों पर लगाता भागवत कथा, कार्तिक महात्म्य, रामायण सहित अन्य धर्म शास्त्रों का प्रवचन चल रहा है। गुरुवार को सिद्धाश्रम में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए स्वामी चिदात्मन जी ने कहा कि सिमरिया में आश्विन शुक्ल पक्ष एकादशी को शास्त्र के अनुसार कल्पवास का ध्वजारोहण होता है।

उन्होंने कहा कि आश्विन पूर्णिमा के दिन बाल्मीकि जयंती मनाए जाने के बाद प्रतिपदा की तिथि से लगातार कार्तिक महात्म्य एवं भागवत कथा शुरू हो जाता है। हमारी प्रथा है कि गंगोत्तर में संक्रांति से तथा गंगा के दक्षिण पूर्णिमा से कथा और वास शुरू होती है। सिमरिया तीन मिलन स्थली है, गंगा के उत्तर में मिथिला, दक्षिण में मगध और पूर्वी छोर पर अंग इसे त्रिवेणी बनाती है। उत्तरायणी और पश्चिम वाहिनी गंगा मिलकर पूर्व वाहिनी हो जाते हैं, इसलिए सिमरिया देव कर्म और पितृ कर्म के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। यहां केवल एक बार स्नान करने से पाप और ताप से लोग मुक्त हो जाते हैं, ऐसे में यहां कल्पवास का तप सहने वालों का भाग्योदय कौन रोक सकता है।

श्री सीताराम संत सेवा शिविर खालसा के महंत रमण दास ने कहा कि दो दशक से अधिक समय से प्रत्येक बार कल्पवास करने सिमरिया आते हैं। कल्पवासियों की दिनचर्या है कि रोज नित्यकर्म से निवृत होने के बाद गंगा स्नान और पूजा पाठ कर कथा से चालू होती है। दोपहर में भोग और शाम की कथा संध्या आरती के बाद समाप्त होती है। यह जीवन का परम उत्कर्ष है, लक्ष्य है भगवान के नाम का अधिक से अधिक प्रचार करना। कथा के माध्यम से लोगों का चरित्र उत्तम हो, व्यवहार सुंदर हो, देश में अमन चैन और शांति हो, इसलिए तमाम साधु कटिबद्ध हैं तथा हर साल किसी भी परिस्थिति को झेलते हुए आते हैं, आएंगे, कल्याण करते रहेंगे।

उड़ीसा खालसा के महंत गदाधर दास ने कार्तिक महात्म्य कथा के दौरान कहा कि किसी को भी अपना-पराया नहीं समझना चाहिए। क्योंकि परमात्मा एक हैं, परमात्मा की आराधना मानवता है और मानवता ही मनुष्य का धर्म है। इसलिए गंगा की गोद में कथा का श्रवण करते हैं, सभी लोग भोग विलास त्याग कर गंगा की गोद में एकाकार है तो श्रवण किए गए कथा को अक्षरशः अपने जीवन में लागू करना चाहिए।

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