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ज्ञानवापी परिसर के वैज्ञानिक सर्वे की मांग वाली याचिका पर फैसला 21 जुलाई तक के लिए सुरक्षित

जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में शुक्रवार को ज्ञानवापी के वजू स्थल को छोड़कर परिसर के वैज्ञानिक सर्वे की मांग वाली याचिका पर सुनवाई हुई। लगभग डेढ़ घंटे तक जिला जज ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला 21 जुलाई तक के लिए सुरक्षित रख लिया। हिन्दू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने पत्रकारों को ये जानकारी दी। उन्होंने बताया कि हमने वजूखाना को छोड़कर पूरे ज्ञानवापी परिसर की पुरातात्विक और वैज्ञानिक जांच की मांग रखी थी। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में भी सुनवाई जारी है, जल्द ही बड़ा फैसला आएगा। अदालत में पिछली सुनवाई के दौरान प्रतिवादी पक्ष अंजुमन इंतजामिया ने आपत्ति दर्ज करने के लिए समय मांगा था। इस पर जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत में 14 जुलाई की तारीख नियत की थी। मां शृंगार गौरी के मूल वाद सहित 10 मामलों की सुनवाई हुई और मुस्लिम पक्ष ने आपत्ति दर्ज कराई। सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों के अधिवक्ताओं समेत केंद्र सरकार के वकील अमित श्रीवास्तव ने भी पक्ष रखा।

मांं शृंगार गौरी की याचिका में वादिनी चारों महिलाओं लक्ष्मी देवी, रेखा पाठक, सीता साहू व मंजू व्यास ने अपने अधिवक्ताओं के जरिए सात मामलों की सुनवाई एक साथ, एक ही कोर्ट में करने की मांग की थी। इसमें छह सिविल जज सीनियर और किरन सिंह विसेन का एक केस फास्ट ट्रैक कोर्ट में चल रहा था। इस मामले में जिला जज की अदालत ने बीते 17 अप्रैल को आदेश पारित किया था कि उनकी कोर्ट में सभी सात मामलों की फाइलों को रखा जाए। 17 अप्रैल को कोर्ट के आदेश के बाद पहली बार छह सिविल कोर्ट और एक फास्ट ट्रैक कोर्ट से सभी सात याचिकाओं को निकाल एक साथ जिला जज के सामने रखा गया।

जिला जज ने 22 मई को सभी केस को साथ सुनने का आदेश दिया था। आदेश में कहा कि सभी वाद का शेड्यूल तय करते हुए सभी की सुनवाई एक साथ चलेगी। इसमें पहला केस अविमुक्तेश्वरानंद, दूसरा मां शृंगार गौरी व अन्य, तीसरा आदि विश्वेश्वर व अन्य, चौथा आदि विश्वेश्वर आदि, पांचवां मां गंगा व अन्य, छठा सत्यम त्रिपाठी व अन्य और सातवां नंदी जी महाराज की तरफ से दाखिल वाद हैं। यह सभी वाद एक ही प्रकृति के बताए गए हैं। इनमें आराजी नंबर 9130 के स्वामित्व की मांग और ज्ञानवापी परिसर स्थित शृंगार गौरी, आदि विश्वेश्वर एवं अन्य देवी-देवताओं के राग भोग, दर्शन पूजन आदि की मांग नाबालिग देवता मानते हुए की गई है।


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