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कार्तिक पूर्णिमा और देव दीपावली पर श्रद्धालुओं ने पवित्र गंगा में लगाई डुबकी

वाराणसी, 07 नवम्बर (हि.स.)। कार्तिक पूर्णिमा और देव दीपावली पर सोमवार को काशीपुराधिपति की नगरी काशी में श्रद्धालुओं ने पवित्र गंगा में आस्था की डुबकी लगाई और गंगा में दीपदान कर दान पुण्य किया। गंगा स्नान के लिए श्रद्धालु तड़के से ही गंगा तट पर पहुंचने लगे। स्नान ध्यान का सिलसिला भोर से ही चलता रहा। शहर के प्राचीन दशाश्वमेध घाट, शीतला घाट, अहिल्याबाई घाट, पंचगंगा घाट, अस्सी घाट, केदार घाट, खिड़किया घाट, भैंसासुर घाट पर स्नान के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ जुटी रही। श्रद्धालुओं के चलते घाटों पर मेले जैसा दृश्य रहा। जिला प्रशासन की ओर से सुरक्षा व्यवस्था बनाये रखने के लिए पुलिस बल की तैनाती की गयी थी। गौरतलब हो कि चंद्रग्रहण के चलते सूतक काल को देख श्रद्धालु एक दिन पहले ही देव दीपावली और कार्तिक पूर्णिमा मना रहे हैं। कार्तिक पूर्णिमा की शुरूआत सोमवार शाम 4 बजकर 15 मिनट से हो रही है, समापन 08 नवम्बर की शाम 4 बजकर 31 मिनट पर हो रहा है। परम्परानुसार उदया तिथि में गंगा स्नान और त्यौहार मनाने की परम्परा है। लेकिन चंद्रग्रहण के चलते सूतक काल को देख बड़ी संख्या में श्रद्धालु आज गंगा में स्नान कर रहे हैं और कल भी करेंगे। सनातन भारतीय संस्कृति के स्नान पर्वों में कार्तिक पूर्णिमा के स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा, यमुना, गोदावरी आदि पवित्र नदियों में स्नान की महत्ता पुराणों में भी वर्णित है। इस दिन गंगा स्नान करने से वर्ष भर गंगा स्नान करने बराबर के फल की प्राप्ति होती है। कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। भगवान शिव ने इसी दिन त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का वध किया था। इन्हीं मान्यताओं से ओतप्रोत श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान किया। लोगों का मानना है कि कार्तिक पूर्णिमा पर गंगा में या तुलसी के समीप दीप जलाने से महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। एक अन्य कथा है कि महाभारत का महायुद्ध समाप्त होने पर पांडव इस बात से बहुत दुखी थे कि युद्ध में उनके सगे-संबंधियों की असमय मृत्यु हुई। अब उनकी आत्मा की शांति कैसे हो। पांडवों की चिंता को देखते हुए भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों को पितरों की तृप्ति के उपाय बताए। इस उपाय में कार्तिक शुक्ल अष्टमी से लेकर कार्तिक पूर्णिमा तक की विधि शामिल थी। कार्तिक पूर्णिमा को पांडवों ने पितरों की आत्मा की तृप्ति के लिए गढ़ मुक्तेश्वर में तर्पण और दीप दान किया था। तुलसी माता का पृथ्वी पर आगमन पौराणिक मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि को देवी तुलसी का भगवान के शालिग्राम स्वरूप से विवाह हुआ था। और पूर्णिमा तिथि को देवी तुलसी का बैकुंठ में आगमन हुआ था। इसलिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन देवी तुलसी की पूजा का खास महत्व है। मान्यताओं के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही देवी तुलसी का पृथ्वी पर भी आगमन हुआ है। इस दिन नारायण को तुलसी अर्पित करने से अन्य दिनों की अपेक्षा अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।
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