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सारे तीरथ बार-बार गंगासागर एक बार

गंगासागर महातीर्थ हैं। मकर संक्रांति पर यहां लगने वाले वार्षिक मेले में दुनिया भर के लाखों लोग डुबकी लगाते हैं। गंगासागर यात्रा सैकड़ों तीर्थयात्राओं के समान मानी जाती है। भारत में सबसे पवित्र गंगा नदी गंगोत्री से निकल कर पश्चिम बंगाल में सागर से मिलती है। गंगा का जहां सागर से मिलन होता है उस स्थान को गंगासागर के नाम से जाना जाता है। इस स्थान को सागरद्वीप के नाम से भी जाना जाता है। कुंभ मेले को छोडकर देश में आयोजित होने वाले तमाम मेलों में गंगासागर का मेला सबसे बड़ा होता है। हिंदू धर्मग्रंथों में इसकी चर्चा मोक्षधाम के तौर पर की गई है। मकर संक्रांति पर लाखों श्रद्धालु मोक्ष की कामना लेकर आते हैं और सागर-संगम में पुण्य की डुबकी लगाते है।

गंगासागर में मकर संक्रांति से पंद्रह दिन पहले मेला शुरू हो जाता है। लोग संगम में स्नान कर सूर्यदेव को अर्ध्य देते हैं। मेले की विशालता के कारण इसे लघु कुंभ मेला भी कहते हैं। मकर संक्रांति के दिन यहां सूर्यपूजा के साथ विशेष तौर कपिल मुनि की पूजा की जाती है। मान्यता है कि ऋषि-मुनियों के लिए गृहस्थ आश्रम या पारिवारिक जीवन वर्जित होता है। भगवान विष्णु जी के कहने पर कपिल मुनि के पिता कर्दम ऋषि ने गृहस्थ आश्रम में प्रवेश किया। उन्होंने विष्णु भगवान से शर्त रखी कि भगवान विष्णु को उनके पुत्र रूप में जन्म लेना होगा। भगवान विष्णु ने शर्त मान ली फलस्वरूप कपिल मुनि का जन्म हुआ। उन्हें विष्णु अवतार माना गया है।

आगे चल कर गंगा और सागर के मिलन स्थल पर कपिल मुनि आश्रम बना कर तप करने लगे। इस दौरान राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया। यज्ञ के अश्वों को छोड़ा गया। ऐसी परिपाटी है कि ये जहां से गुजरते हैं वे राज्य अधीनता स्वीकार करते है। अश्व को रोकने वाले राजा को युद्ध करना पड़ता है। राजा सगर ने यज्ञ अश्वों के रक्षा के लिए उनके साथ अपने 60 हजार पुत्रों को भेजा। अचानक यज्ञ अश्व गायब हो गया। खोजने पर यज्ञ का अश्व कपिल मुनि के आश्रम में मिला।

फलतः सगर पुत्र साधनरत ऋषि से नाराज हो उन्हें अपशब्द कहने लगे। इससे शापित ऋषि ने नाराज हो कर उन्हें अपने नेत्रों के तेज से भस्म कर दिया। मुनि के श्राप के कारण उनकी आत्मा को मुक्ति नहीं मिल सकी। काफी वर्षों के बाद राजा सगर के पौत्र राजा भगीरथ कपिल मुनि से माफी मांगने पहुंचे। कपिल मुनि राजा भगीरथ के व्यवहार से प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा कि गंगा जल से ही राजा सगर के 60 हजार मृत पुत्रों का मोक्ष संभव है। राजा भगीरथ ने अपने अथक प्रयास और तप से गंगा को धरती पर उतारा। अपने पुरखों के भस्म स्थान पर गंगा को मकर संक्रांति के दिन लाकर उनकी आत्मा को मुक्ति और शांति दिलाई। यही स्थान गंगासागर कहलाया। इसलिए यहां स्नान का इतना महत्व है।

हिंदू मान्यता के अनुसार साल की 12 संक्रांतियों में मकर संक्रांति का सबसे महत्व ज्यादा है। मान्यता है कि इस दिन सूर्य मकर राशि में आता हैं और इसके साथ देवताओं का दिन शुरू हो जाता है। गंगासागर के संगम पर श्रद्धालु समुद्र को नारियल और यज्ञोपवीत भेंट करते हैं। समुद्र में पूजन एवं पिंडदान कर पितरों को जल अर्पित करते हैं। गंगासागर में स्नान-दान का महत्व शास्त्रों में विस्तार से बताया गया है। मान्यतानुसार जो युवतियां यहां पर स्नान करती हैं। उन्हें अपनी इच्छानुसार वर तथा युवकों को स्वेच्छित वधु प्राप्त होती है। मेले में आए लोग कपिल मुनि के आश्रम में उनकी मूर्ति की पूजा करते हैं। मंदिर में गंगा देवी, कपिल मुनि तथा भगीरथ की मूर्तियां स्थापित हैं।

पहले गंगासागर जाना हर किसी के लिये संभव नहीं था। तभी कहा जाता था कि सारे तीरथ बार-बार गंगासागर एक बार। यह पुराने जमाने की बात है जब यहां सिर्फ जल मार्ग से ही पहुंचा जा सकता था। आधुनिक परिवहन साधनों से अब यहां आना सुगम हो गया है। पश्चिम बंगाल के दक्षिण चौबीस परगना जिले में स्थित इस तीर्थस्थल पर कपिल मुनि का मंदिर हैं। मान्यता है कि यहां मकर संक्रांति पर पुण्य स्नान करने से मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। सुंदरवन निकट होने के कारण गंगासागर मेले को कई विषम स्थितियों का सामना करना पड़ता है। तूफान और ऊंची लहरें हर वर्ष मेले में बाधा डालती हैं।

इस द्वीप में ही रॉयल बंगाल टाइगर का प्राकृतिक आवास है। यहां दलदल, जलमार्ग तथा छोटी छोटी नदियां, नहरें भी है। बहुत पहले इस स्थान पर गंगा की धारा सागर में मिलती थी। किंतु अब इसका मुहाना पीछे हट गया है। अब इस द्वीप के पास गंगा की छोटी धारा सागर से मिलती है। मेले में स्नान मुहूर्त तीन दिनों का होता है। यहां अलग से गंगाजी का कोई मंदिर नहीं है। मेले के लिए स्थान निश्चित है। कहा जाता है कि कपिल मुनि के प्राचीन मंदिर को सागर की लहरें बहा ले गई थीं। मंदिर की मूर्ति अब कोलकाता में रहती है। मेले से कुछ सप्ताह पूर्व यहां के पुरोहितों को पूजा-अर्चना के लिए मिलती है।

गंगासागर मेला में 5 दिन महत्वपूर्ण होते हैं। इनदिनों में तीर्थयात्री मुंडन, श्राद्ध, पिंडदान और पितरों को जल अर्पित करते हैं। कपिल मुनि का प्राचीन मंदिर समुद्र में समा गया था। 1973 में यहा कपिल मुनि का नया मंदिर बना है। गंगासागर एक छोटा गंगा नदी का डेल्टा द्वीप है। इसका क्षेत्रफल 282 वर्ग किलोमीटर है। सागर द्वीप के एक ओर बंगाल की खाड़ी और दूसरी ओर बांग्लादेश है। इस सुंदर द्वीप के ज्यादातर क्षेत्र में घने जंगल हैं। कपिल मुनि के मंदिर, आश्रम के अलावा यहां महादेव मंदिर, शिव शक्ति-महानिर्वाण आश्रम, भारत सेवाश्रम संघ का मंदिर और धर्मशालायें भी हैं।

इस टापू पर बांग्ला भाषी आबादी रहती है। अब तो पूरे वर्ष लोगों का यहां आवागमन होता है। कोलकाता से यहां पहुंचने के लिए सड़क है। मात्र 5 किलोमीटर नाव का सफर करना पड़ता है। गंगासागर में मकर संक्रांति के दिन 14 और 15 जनवरी को मुख्य मेला लगता है। गंगासागर के कायापलट में जुटीं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी मुरिगंगा में ब्रिज का निर्माण करवाने के लिए प्रयासरत हैं। इस ब्रिज के बनने से लोग सड़क मार्ग से कचुबेरिया तक आ सकेगें। जल मार्ग का झंझट खत्म हो जाएगा। गंगासागर मेला किसी भी तरह कुंभ मेले से कम नहीं है। इस कारण इस मेले को भी कुंभ मेले जैसा दर्जा मिलना चाहिये। यहां के विकास के लिए कुंभ मेले की तरह अलग से बजट उपलब्ध होना चाहिए।


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