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सरकारी मदद न मिलने से डेढ़ सौ साल पुराना सरकारी कॉलेज खंडहर में बदला

बांदा, 26 दिसंबर (हि.स.)। चित्रकूट मंडल मुख्यालय बांदा में लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व अंग्रेजों के जमाने में बना राजकीय इंटर कॉलेज का भवन पूरी तरह जर्जर होकर धराशाई हो चुका है। यहां पढ़ने वाले हजारों बच्चे खुले आसमान के नीचे पढ़ने के लिए मजबूर हैं। जहां प्राइवेट स्कूल सरकारी अनुदान पाकर चमाचम नजर आते हैं। वही ग्रांड के अभाव में यह कॉलेज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रहा है। शासन की ओर से कॉलेज की ओर देखा तक नहीं जा रहा है। राजकीय इंटर कॉलेज 1874 में अंग्रेजों द्वारा बनवाया गया था। लंबे चौड़े परिसर में स्थित यह भवन अंग्रेजी खपरैल वाली छत तले चल रहा था। इस भवन की खस्ताहाली कई दशक पहले शुरू हो चुकी थी। पहले छतें टपक रही थी। धीरे-धीरे इनकी छतें भी धराशाई होने लगी। 16 कमरों में बना यह विद्यालय भवन एक-एक करके गिरने लगा। वर्तमान में इसके सभी 16 कमरे जर्जर होकर जमीनदोंज हो गए हैं। इसी खस्ताहाल भवन में हजारों छात्र और आधा सैकड़ा से ज्यादा शिक्षक व शिक्षकेतर कर्मचारी बैठते रहे हैं। इस दौरान खपरैल हटाकर स्लैब के लिए सरकार से बजट मांगा गया। सरकार द्वारा नही बजट दिया गया और न ही इसका मरम्मत कार्य हुआ। यही वजह है कि अंग्रेजों के जमाने में बना यह विद्यालय भवन पूरी तरह ध्वस्त हो गया। छात्रावास पहले ही ध्वस्त हो चुका था। अब सभी लैब की ध्वस्त हो गए हैं। सभी भवनों के खपरैल गिरने के बाद इनकी दीवारों की हालत भी दयनीय हैं। दीवारों में जगह-जगह दरारें हैं। गनीमत है कि जब भी विद्यालय की छतें गिरी। उस समय शिक्षण कार्य नहीं हो रहा था। जिससे कई बार हादसे टल गए। इस बारे में विद्यालय के पुरातन छात्र तरुण कुमार खरे बताते हैं कि अंग्रेजों के जमाने में बना यह विद्यालय महिलाओं के लिए बनाया गया था। जब हम इस विद्यालय में पढ़ते थे तब इसकी गुणवत्ता सबसे उत्तम थी। इसमें पढ़ने वाले तमाम छात्र राज्य और केंद्र सरकारों में उच्च पदों पर पहुंच चुके हैं। लेकिन धीरे-धीरे कॉलेज भवन जर्जर होता गया और इस समय सभी 16 कमरे गिर चुके हैं, जो बच्चे यहां पढ़ते हैं। उन्हें खुले आसमान के नीचे पढ़ना पड़ता है। बारिश व तेज धूप में पढ़ना मुश्किल हो जाता है। भवन का पुनर्निर्माण बहुत जरूरी है, लेकिन शासन द्वारा अभी तक कॉलेज भवन के लिए कोई ग्रांड न मिलने पर इस कॉलेज की स्थिति दिनों-दिन दयनीय होती जा रही है। इस दिशा में जनप्रतिनिधियों के साथ-साथ प्रशासनिक अधिकारियों को भी सार्थक कदम उठाने चाहिए।
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