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जैन धर्म हमें त्याग व तपस्या का दिखाता है रास्ता : असीम अरुण

कानपुर, 20 जून (हि.स.)। जैन धर्म विश्व का प्राचीनतम धर्म है और इस पर बहुत शोध करने की जरुरत है। हम अपनी रिसर्च की जबरदस्त मार्केटिंग भी करें, जिससे हम इस रिसर्च को जन-जन तक भेज सकें। यही नहीं विश्व गुरु बनने से पहले हम विश्व शिष्य बने और जैन धर्म हमें त्याग व तपस्या का रास्ता दिखाता है। यह बातें गुरुवार को उत्तर प्रदेश सरकार के समाज कल्याण मंत्री ने जैन शोधपीठ के शुभारंभ के दौरान कहीं।

छत्रपति शाहू जी महाराज विश्वविद्यालय में गुरुवार को आचार्य श्री विद्यासागर सुधासागर जैन शोधपीठ का शुभारंभ वीरांगना लक्ष्मीबाई सभागार में किया गया। यह कार्यक्रम दो सत्रों में आयोजित किया गया। प्रथम सत्र में कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश सरकार के समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण, विशिष्ट अतिथि आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रो. मणींद्र अग्रवाल, कुलपति प्रो. विनय कुमार पाठक,प्रति कुलपति प्रो.सुधीर अवस्थी, कुलसचिव डा. अनिल यादव, प्रदीप जैन, सुधींद्र जैन, अरविंद जैन, राकेश जैन, राजीव जैन की उपस्थिति रही। मंगलाचरण वीरेन्द्र जैन शास्त्री हीरापुर, राहुल जैन शास्त्री के जरिये किया गया।

कुलपति ने कहा जैन दर्शन पर अधिक से अधिक शोध होना चाहिए। जैन धर्म के अनुसार आहार-चर्या का डायबिटीज पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है, इस पर शोध किए जाने की आवश्यकता है।

आईआईटी के निदेशक प्रो0 मणींद्र अग्रवाल ने कहा कि भारत का प्राचीन साहित्य जिसे जैन दर्शन में आगम कहा गया है, वह पांडु लिपियों के रुप में इधर-उधर विखरा पड़ा है। यह पीठ उसको एकत्र कर ओसिआर टेक्नोलॉजी के माध्यम से संरक्षित करने का काम करेगी तथा आईआईटी कानपुर के साथ मिलकर इन प्राचीन साहित्यों के आपसी सम्बन्धों को ए.आई. टेक्नोलॉजी के माध्यम से स्थापित करने का कार्य करेगी जोकि भविष्य के शोध के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी।

द्वितीय सत्र में सभापति प्रो. फूलचंद जैन प्रेमी वाराणसी ने जैन सिद्धांत वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सर्वाधिक प्रासंगिक पर अपना वक्तव्य दिया और जैन पीठ के कार्यों को योजना पर भी मार्गदर्शन दिया। अतिथि वक्ता डॉ0 आशीष जैन आचार्य शाहगढ़ (राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त) ने जैन आगम की प्रमुख भाषा प्राकृत के विस्तार एवं शोध की आवश्यकता पर अपना व्याख्यान दिया।

कहा कि प्राकृत भाषा जन-जन की भाषा है,इसमें मधुरता है। प्राकृत भाषा में रचित जैन साहित्य के संग्रह की महती आवश्यकता है तथा इसके हिन्दी अनुवाद की भी व्यवस्था तकनीकी के माध्यम से की जानी चाहिए।


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