खूंटी, 9 जून (हि.स.)। झारखंड अलग राज्य आंदोलन की बुनियाद रखने वाली झारखंड पार्टी, जिसके कभी बिहार विधानसभा में 32 विधायक हुआ करते थे, उसी झारखंड पार्टी के समक्ष आज अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है। 1952 से 1972 तक खूंटी सुरक्षित संसदीय क्षेत्र में झारखंड पार्टी एकछत्र राज्य हुआ करता था। उसके उम्मीदवारों ने लगातार जीत हासिल की थी।
खूंटी खासकर तोरपा, कोलेबिरा जैसे विधानसभा क्षेत्र में दूसरी पार्टियों के चुनाव प्रचार वाहन तक नहीं जाते थे। वहीं मारंग गोमके जयपाल सिंह और बाद में एनई होरो की एक आवाज से पूरा गांव एकजुट हो जाता था, आज उसी पार्टी के समक्ष अपनी पहचान बचाने की चुनौती खड़ी हो गई है। पार्टी के घटते जनाधार इसका अनुमान सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि इस वर्ष के लोकसभा चुनाव में झारखंड पार्टी एक फीसदी लोगों का भी समर्थन पाने में बुरी तरह विफल रही।
इसके पहले 2014 के संसदीय चुनाव में झारखंड पार्टी दूसरे स्थान पर थी। पार्टी प्रयाशी एनोस एक्का ने भाजपा के कड़िया मुंडा को कड़ी टक्कर दी थी। तोरपा-खूंटी सुरक्षित संसदीय सीट झारखंड पार्टी का गढ माना जाता था। सिमडेगा सीट से एनोस एक्का के विधायक बनने और राज्य की भाजपा सरकार को समर्थन देने के मुद्दे पर पार्टी में दो फाड़ हो गया और उसके बाद से पार्टी का जनाधार लगातार घटने लगा। इसका परिणााम रहा कि 1980 के बाद 2024 तक कोई भी संसदीय चुनाव नहीं जीत सकी।
अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन
इस संसदीय चुनाव में झारखंड पार्टी का प्रदर्शन सबसे खराब रहा। पार्टी उम्मीदवार को एक प्रतिशत से भी कम वोट मिले। झारखंड पार्टी को नोटा से भी कम मात्र 8532 वोट मिला, जबकि 21919 मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया। झारखंड पार्टी जमानत भी नही बचा पायी। निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरे बसंत लोंगा को झारखंड पार्टी से अधिक 10755 वोट हासिल हुआ। इसका सीधा अर्थ है कि क्षेत्र की 99 फीसदी से अधिक लोगों ने झारखंड पार्टी कों नकार दिया।
38 बूथों में झापा को एक भी वोट नहीं मिला
तोरपा विधानसभा क्षेत्र झारखंड पार्टी का सबसे मजबूत गढ था। एनई होरो कई बार यहां से विधायक रहे हैं। इस चुनाव में तोरपा विधानसभा क्षेत्र में झारखंड पार्टी का प्रदर्शन बहुत ही खराब रहा। यहां पार्टी प्रत्याशी को महज 672 वोट मिले। तोरपा विधानसभा क्षेत्र के 38 बूथों में झापा को एक भी वोट नहीं मिला, वहीं 48 बूथों में एक, 52 बूथों में दो वोट मिले। 252 मतदान केंद्रों में से 246 बूथों में इसे दस से भी कम वोट मिला। बूथ संख्या 83 में सबसे अधिक 24 व बूथ संख्या 91 में 21 वोट मिले। झारखंड पार्टी के इतने खराब प्रदर्शन को लेकर सवाल उठने लगे हैं। लोगों का कहना है कि झारखंड पार्टी के खराब प्रदर्शन से पार्टी अध्यक्ष एनोस एक्का की साख को धक्का लगा है। इस नतीजे का असर विधानसभा चुनाव में दिखेगा।
चुनाव लड़ने की मंशा पर उठ रहे सवालिया निशान
कुछ लोग तो झारखंड पार्टी के चुनाव लड़ने की मंशा पर भी सवालिया निशान लगा रहे हैं। उनका कहना है कि चुनाव के दौरान पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता से साफ हो गया था कि किसी खास प्रत्याशी को लाभ पहुंचाने के लिए पार्टी नेताओं ने मतदाताओं से दूरी बना ली। पार्टी नेता और कार्यकर्ताओं ने न तो चुनाव प्रचार में रुचि दिखाई और न ही मतदान के दिन पार्टी नेता कहीं नजर आये।