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केविके परसौनी को मिली सफलता,30 साल बाद चंपारण मे मोटे अनाज कौनी की हुई कटाई

पूर्वी चंपारण,08अगस्त(हि.स.)।जिले के पहाड़पुर प्रखंड स्थित परसौनी कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों का मेहनत अब रंग लाने लगी है।केन्द्र ने जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के तहत किसानों को मोटा अनाज लगाने के लिए दिये गये प्रशिक्षण और प्रेरणा से किसानो के खेत में मोटे अनाज कौनी की अब कटाई होने लगी है।

किसानो के खेतो में फसल कटाई के दौरान मौजूद मृदा विशेषज्ञ आशीष राय ने प्रसन्नता जाहिर करते बताया कि केन्द्र के विशेषज्ञो की टीम ने जलवायु संकट को देखते हुए किसानो को मोटे अनाज की बुवाई के लिए प्रेरित किया था,साथ ही उन्हे मोटे अनाज कौनी के उत्तम बीज जो कि बिहार में ही तैयार किया गया है,राजेंद्र कौनी-1 दिया गया था।जिसका बुवाई कर किसानो ने बेहतर उत्पादन प्राप्त किया है।

उन्होने बताया मोटे अनाज कौनी का फसल जिसे बहुत कम खाद और पानी की जरूरत होती है।उन्होने बताया केन्द्र ने क्षेत्रीय किसान मैनेजर प्रसाद सहित अन्य किसान से कौनी की सीधी बीजाई कराया था।जिसकी अब कटाई हो रही है,अब इन खेतो में किसान धान या अन्य फसल की बुवाई की तैयारी कर रहे है,यानी एक खरीफ मौसम में दो फसल जो किसानो के काफी लाभदायक सिद्ध होगा।

केविके के वरीय वैज्ञानिक डॉ अरविंद कुमार सिंह ने भी केन्द्र के वैज्ञानिकों की सफलता की सराहना करते बताया कि राजेंद्र कौनी -1 कम समय में पकने वाली फसल है जो महज 80 दिनों में तैयार हो जाती है।पौष्टिकता से भरपूर कौनी का वैश्विक मांग है।उन्होने कहा कि मोटे अनाज का यह उत्पादन चंपारण क्षेत्र में 25 -30 साल बाद किया गया है,जो केन्द्र की सफलता को परिलक्षित कर रहा है,केन्द्र के सहयोग से किसान के खेतो में मोटे अनाज मडुआ व कोदो की भी खेती की गयी है,जिसका परिणाम भी बेहतर होगे।

उन्होने इस कार्य के लिए केन्द्र के मृदा विशेषज्ञ डा.आशीष राय कीट विशेषज्ञ जीर विनायक, संस्कृति सिंधु,सहकर्मी रुपेश कुमार, चुन्नू कुमार, संतोष कुमार, विपिन कुमार सहित उन सभी किसानों की प्रशंसा किया जिन्होने मोटे अनाज के महत्व को समझ कर इसकी खेती के लिए अग्रसर हुए है।

-कैसे करे कौनी की खेती

कौनी की फसल की बुवाई हर प्रकार की मिट्टी में हो सकती है।सिंचित क्षेत्रों में अप्रैल-मई में इसकी खेती की जा सकती है। इसे 25-30 सेंटीमीटर की दूरी वाली कतारों में 3-4 सेंटीमीटर की गहराई पर रोपना चाहिए। इसके लिए 8-10 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है।इस फसल को अत्यधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती।पौधो में 15 दिन बाद निकाई करना चाहिए।इस फसल पर कीट का प्रकोप बहुत कम होता है।अगर कीट का प्रभाव दिखे तो प्राकृतिक अवयव का छिड़काव करे।

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