नई दिल्ली, 27 मई (हि.स.)। दिल्ली के राऊज एवेन्यू कोर्ट ने महाराष्ट्र के मार्की मंगली प्रथम में कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला मामले में बीएस इस्पात कंपनी लिमिटेड (बीएसआईएल) और उसके दो निदेशकों को दोषी करार दिया है। स्पेशल जज संजय बंसल ने आरोपितों की सजा की अवधि पर कल यानि 28 मई को फैसला सुनाने का आदेश दिया।
कोर्ट ने 29 अप्रैल को फैसला सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने बीएसआईएल के अलावा इसके दो निदेशकों मोहन अग्रवाल और राकेश अग्रवाल को भारतीय दंड संहिता की धारा 420 और 120 बी के तहत दोषी करार दिया है। कोर्ट ने बीएसआईएल को भारतीय दंड संहिता की धारा 406 का भी दोषी करार दिया है। ये कोयला ब्लॉक आवंटन घोटाला 2012 का है। इस मामले में सतर्कता आयोग की अनुशंसा पर सीबीआई ने 2012 में जांच शुरू की थी, जिसके बाद 2015 में एफआईआर दर्ज की गई थी।
सीबीआई के मुताबिक बीएसआईएल ने 28 जून 1999 को केंद्रीय कोयला मंत्रालय को मार्की मंगली कोयला ब्लॉक में कोयले के खनन का आवंटन देने के लिए आवेदन दिया था। बीएसआईएल ने अपनी कंपनी में स्पांज आयरन प्लांट के लिए कोयले की जरूरतों को पूरा करने के लिए कोयला ब्लॉक के आवंटन का आवेदन किया था। सीबीआई के मुताबिक बीएसआईएल ने जब कोयला ब्लॉक के आवंटन के लिए कोयला मंत्रालय को आवेदन किया था, उस समय वह कंपनी बनी ही नहीं थी। बीएसआईएल ने 28 जून 1999 को कोयला ब्लॉक के आवंटन के लिए आवेदन किया था लेकिन कंपनी का गठन 1 दिसंबर 1999 को हुआ था। कंपनी के गठन का प्रमाण पत्र 27 अप्रैल 2000 को जारी किया गया था।
बीएसआईएल ने कोयला ब्लॉक आवंटन के लिए अपने जिस लेटरहेड पर आवेदन किया था, उसमें मोहन अग्रवाल का बतौर निदेशक के रूप में हस्ताक्षर किया गया था। सीबीआई के मुताबिक राकेश अग्रवाल ने 23 जुलाई 1999 को यवतमाल जिले के कलेक्टर के पास बतौर बीएसआईएल के निदेशक के रूप में कोयला ब्लॉक आवंटन के लिए आवेदन किया था। राकेश अग्रवाल ने आवेदन के साथ बीएसआईएल का मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन और आर्टिकल ऑफ एसोसिएशन भी संलग्न किया था।
कोर्ट ने कहा कि अगर आरोपितों की मंशा आपराधिक नहीं होती तो वे अपनी कंपनी के गठन का इंतजार करते लेकिन आरोपितों ने इसका इंतजार किए बिना ही कोयला ब्लॉक आवंटन की कार्रवाई को आगे बढ़ाया। कंपनी के दोनों निदेशकों ने इस बात का भी संतोजनक जवाब नहीं दिया कि जब कंपनी का गठन हुआ ही नहीं था तो उन्होंने बतौर निदेशक हस्ताक्षर कैसे किया था।