मुकुंद
अब समाजवादी पार्टी के संस्थापक, पूर्व केंद्रीयमंत्री और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव उर्फ नेताजी की यादें ही शेष हैं। वयोवृद्ध नेताजी मेंदाता अस्पताल गुरुग्राम में सोमवार को बीमारी से हार गए। मुलायम के साथ समाजवाद का ताना-बाना भी खामोश हो गया। प्रखर समाजवादी चिंतक और विचारक डॉ. राममनोहर लोहिया ने एक बार कहा था-देश का अगला नेतृत्व ग्रामीण परिवेश का होगा। आज देश को मुलायम सिंह जैसे जुझारू, संकल्प के धनी और कर्मठ नेतृत्व की आवश्यकता है। मुलायम सिंह ताउम्र समाजवादी रहे। वह अपने राजनीतिक स्वप्नदृष्टा लोहिया को कभी नहीं भूल पाए।
छोटे लोहिया के नाम से प्रसिद्ध पूर्व केंद्रीयमंत्री जनेश्वर मिश्र तो अपने जीवनकाल में यह बात गाहे-बगाहे दोहराते रहे कि लोहिया के बाद मुलायम ही ऐसे नेता हैं जिन्हें जनता के दुखदर्द की समझ है। वे गांव की समस्याओं और गरीबों की पीड़ा के कारणों को जानते हैं। उनके निदान के लिए बेचैन भी रहते हैं। उत्तर प्रदेश की राजनीति से देश के फलक पर चमकने वाले इस नेता पर कभी जनननायक कर्पूरी ठाकुर ने टिप्पणी की थी-मुलायम सिंह ने उत्तर प्रदेश में कभी समाजवाद की आंच और अलख को धीमा पड़ने नही दिया। वे संघर्ष के बल पर नेता बने हैं। उनके महत्व को हम लोग समझते हैं।
पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने तो यहां तक कहा था कि मुलायम सिंह से सभी नेताओं को संघर्ष और संगठन चलाने की सीख लेनी चाहिए। मुझे स्वीकारने में जरा भी हिचक नहीं है कि मुलायम ही मेरा उत्तराधिकारी है जो किसानों, गरीबों, और वंचितों की बात करता है, उनके लिए लड़ता है। आज नेताजी के निधन से जो शून्य भारतीय राजनीति में उभरा है, उसे भरा जाना बहुत मुश्किल है। यह भी कि नेताजी नहीं हैं तो उनके कृतित्व और व्यक्तित्व के सभी पक्षों बहुत सारी चर्चा होगी। मगर उनका समाजवादी पक्ष इन बहसों में सबसे ऊपर रहेगा। यह सच है कि समाजवाद एक व्यापक और बहुआयामी अवधारणा है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में समाजवाद स्वर्णिम स्वप्न रहा है। इसे डॉ. लोहिया ने स्वतंत्रता के बाद सिद्धांत के रूप में निरूपित किया। कोई यकीन करे या न करे मुलायम सिंह ने समाजवाद के परचम को और अधिक जनोन्मुखी और व्यवहारिक बनाते हुए डॉ. लोहिया के महाप्रयाण (12 अक्टूबर, 1967) के पश्चात पूरी प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ाया।
मुलायम सिंह यादव ने 'बाजारीकरण’, 'उदारीकरण’ और 'वैश्विकरण’ के दौर में भी समाजवाद की लौ की चमक को धुंधलकों से बचाए रखा। कार्ल मार्क्स के निर्गुण विचारों (साम्यवाद) को युग अनुरूप सामयिक बनाकर ब्लादिमिर इलयिच उल्यानोफ (लेनिन) ने सगुण आधार और ठोस कार्ययोजना में परिमार्जित करते हुए दुनिया के पटल विशेषकर रूस में स्थापित किया। मार्क्स-लेनिन व साम्यवाद’’ की इसी सादृश्यता को 'लोहिया-मुलायम व समाजवाद’’ के परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है।
मुलायम सिंह ने नवंबर 1992 में अपनी पार्टी का गठन किया तो उसका नाम 'समाजवादी पार्टी’’ रखा। इसके संविधान की धारा-2 में स्पष्ट शब्दों में लिखा है- समाजवादी पार्टी की भारत के संविधान में सच्ची निष्ठा और श्रद्धा है। महात्मा गांधी और डॉ. राममनोहर लोहिया के आदर्शों से प्रेरणा लेकर समाजवादी पार्टी लोकतंत्र, धर्म निरपेक्षता और समाजवाद में आस्था रखेगी। समाजवादी पार्टी का विश्वास ऐसी राज व्यवस्था में है, जिसमें आर्थिक एवं राजनीतिक सत्ता का विकेंद्रीकरण निश्चित रूप से हो। पार्टी शांतिमय और लोकतांत्रिक तरीकों से विरोध प्रकट करने के अधिकार को मान्यता प्रदान करती है। इसमें सत्याग्रह और शांतिपूर्ण विरोध शामिल है। धर्म पर आधारित राज्य की अवधारणा का समाजवादी पार्टी विरोध करती है। धर्म पर आधारित राज्य में आस्था रखने वाले किसी भी संगठन का कोई भी सदस्य समाजवादी पार्टी का सदस्य नहीं हो सकेगा। महिलाओं, दलितों, अल्पसंख्यकों एवं पिछड़ों के लिए विशेष अवसर के सिद्धांत में समाजवादी पार्टी का विश्वास है। समतापूर्ण समाज की स्थापना के लिए पार्टी इसे जरूरी समझती है। समाजवादी पार्टी विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा तथा उसमें सन्निहित समाजवाद, धर्म निरपेक्षता एवं प्रजातंत्र के सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्ध रहेगी। समाजवादी पार्टी भारत की संप्रभुता, एकता ओैर अखंडता को अक्षुण्ण बनाए रखेगी।
डॉ. लोहिया ने 1955 में समाजवादी युवक सभा के पुरी सम्मेलन में युवाओं को संबोधित करते हुए समानता, अहिंसा, विकेंद्रीकरण, लोकतंत्र एवं समाजवाद को भारत की राजनीति का अभीष्ट ध्येय बतलाया था। लोहिया के अनुयायी मुलायम सिंह यादव ने अपनी पार्टी के संविधान में उनकी भावनाओं को सबसे ऊपर रखा । लोहिया के 'समानता, अहिंसा, विकेंद्रीकरण, लोकतंत्र और समाजवाद के पांचों लक्ष्यों को समाजवादी पार्टी के संविधान की धारा-2 में यथावत अंगीकृत कर यह कोशिश की कि समाजवाद सत्ता प्रतिष्ठान की फैलाई गई मरीचिका में खो न जाए।