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मोदी को कमजोर और बीमार पश्चिम बंगाल की ज्यादा परवाह: दिलीप घोष

कोलकाता, 3 फरवरी(हि.स.)। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कमजोर और बीमार पश्चिम बंगाल की अधिक खेलता है और वे इस राज्य की अधिक परवाह करते हैं। उल्लेखनीय है कि पिछले कुछ दिनों से अन्य राजनीतिक दलों की ओर से भाजपा पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के मद्देनजर आवास योजना सहित अन्य केंद्रीय योजनाओं के लिए आवंटित राशि बढ़ाकर अल्पसंख्यकों को रिझाने की कोशिश कर रही है। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व सांसद दिलीप घोष शुक्रवार सुबह की फ्लाइट से अगरतला के लिए रवाना हुए। इससे पहले हवाई अड्डे पर संवाददाताओं से बात करते हुए पश्चिम बंगाल से जुड़े कई मुद्दों पर टिप्पणियां की। उन्होंने अन्य राजनीतिक दलों की ओर से भाजपा पर अल्पसंख्यकों को सरकारी योजनाओं से रिझाने की कोशिशों के आरोप के विषय में कहा कि पश्चिम बंगाल की स्थिति दयनीय है। लेकिन इसके बावजूद यहां के लोग टैक्स देते हैं। केंद्र सरकार सबकी सरकार है। सबका साथ, सबका विकास। पश्चिम बंगाल सभी लाभों से वंचित रहेगा क्योंकि उसने ममता को वोट दिया, यह मोदी की नीति नहीं है। जो बच्चा कमजोर होता है, मां उसकी ज्यादा परवाह करती है। मोदी को कमजोर और बीमार पश्चिम बंगाल की ज्यादा परवाह है। भाजपा सांसद ने आगे कहा कि यह सोचने वाली बात है। इस राज्य में 30 प्रतिशत लोग अल्पसंख्यक हैं। आजादी के 75 सालों में उन्हें क्या मिला है? वे भी आज इस बारे में सोच रहे हैं। ये 30 प्रतिशत लोग पिछड़े रहेंगे तो राज्य कैसे आगे बढ़ेगा? देश भर में अल्पसंख्यकों के विकास के लिए मोदी जी कितनी योजनाएं बना रहे हैं। गरीब कल्याण योजना से सबसे ज्यादा लाभ गरीब अल्पसंख्यकों को मिला है। वे पश्चिम बंगाल में वंचित हैं। उन्हें यहां भाजपा के नाम से डराया जाता है। वे इतने लंबे समय तक शिक्षा और स्वास्थ्य से वंचित रहे। बम बंदूकें उन्हें जानबूझकर सौंपी गई हैं। अब उन्हें सोचना है कि मोदी से लाभ लेना है या दीदी के साथ बेचारा जीवन जिएंगे। मालदा में मिड-डे मील में बच्चों को बासी सड़े चावल दिये जाने पर उन्होंने राज्य सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि यह घटना बेहद है दुर्भाग्यजनक है। बच्चे हमारा भविष्य हैं। केंद्र मिड-डे मील पर करोड़ों रुपये खर्च कर रही है। ताकि गरीब बच्चे स्कूल में पढ़ने आएं। उन्हें बचा हुआ और सड़ा हुआ खाना खिलाया जा रहा है। वह किस तरह के लोग हैं जो छोटे बच्चों के साथ ऐसा करने से जरा भी नहीं हिचक रहे हैं। ऐसे में जब केंद्रीय दल इन आरोपों की जांच करने के लिए आता है तो उसका विरोध किया जाता है। वही लोग इसका विरोध कर रहे हैं जो बच्चों को सड़ा हुआ खाना खिलाते हैं। ऐसे ही असामाजिक तत्व आज तृणमूल नेता हैं। उनसे किसी तरह की इंसानियत या भलाई की उम्मीद नहीं की जा सकती। तो इस तरह की बात होती रहती है। अचानक यूनेस्को ने कोलकाता में मार्च निकाला। आरोप है कि इस मार्च में वाहनों में सौ दिन रोजगार के तहत काम करने वाली महिलाओं को लाया गया था। इस मामले में दिलीप घोष ने निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि बड़े-बड़े काम छल-कपट से नहीं होते। इन दिनों जहां भी तृणमूल मार्च होता है, इन सौ दिहाड़ी मजदूरों, मिड-डे मिलर्स या सिविक वॉलिंटियर को लाया जाता है। ये उनके अपने लोग हैं। उनका उपयोग किया जा रहा है। वे भी इसे समझ गए हैं। इसलिए वे अब सरकार पर नजर रखते हुए डीए व अन्य मांगों को लेकर आवाज उठा रहे हैं। यूनेस्को एक जाल में फंस गया है। राज्य सरकार इस के नाम पर लोगों को बेवकूफ बना रही है।
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