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विंध्य क्षेत्र से मुनि अगत्स्य ने शुरू की थी संस्कृति के प्रचार-प्रसार की ज्ञान यात्रा

विंध्य पर्वत के सुरम्य आंचल में मां गंगा के तट पर स्थित विंध्याचल धाम सदियों से ऋषि मुनियों की तपस्थली रहा है। उपासकों को मनोवांछित फल प्रदान करने वाली शक्ति स्वरूपा मां विंध्यवासिनी यहां नित्य विराजमान हैं। मां विंध्यवासिनी को पुराणों में आदिशक्ति कहा गया है अर्थात जिनका न कोई आदि है और न कोई अंत। माता को विंध्य पर्वत पर निवास करने के कारण इन्हें विंध्यवासिनी के नाम से जाना जाता है। विंध्याचल को ही विस्तृत विंध्य पर्वत का केंद्र माना जाता है, क्योंकि विंध्यधाम में गंगा और विंध्य पर्वत का संगम होता है, जो इसे मणिद्वीप भी बनाता है। विंध्याचल पर्वत पर निवास करने वाली माता यहां पर सशरीर अवतरित हुई थीं। यहां पर माता अपने तीनों रूप यानी महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली के रूप में विराजमान हैं। यही कारण है कि इसे त्रिकोण यंत्र (महाशक्तियों का त्रिकोण) भी कहा जाता है। त्रिकोण के मध्य में लक्ष्मी स्वरूपा मां विंध्यवासिनी हैं तथा दूसरे कोण पर कालीखोह वाली काली माता व तीसरे कोण पर सरस्वती स्वरूपा ज्ञान की देवी मां अष्टभुजा विराजमान हैं। आचार्य पं. दीनबंधु मिश्र ने बताया कि हजारों वर्षों से विंध्य क्षेत्र ज्ञान प्राप्त करने की तपोस्थली रही है। यहीं से मुनि अगत्स्य ने सभ्यता और संस्कृति के प्रचार-प्रसार की ज्ञान यात्रा आरंभ की। यही वह क्षेत्र है, जहां सप्तऋषियों को ज्ञान प्राप्त हुआ। आदि गुरु शंकराचार्य ने भी यहीं पर मां की महान शक्ति का अनुभव प्राप्त किया। कहा कि किसी भी साधक की साधना तब तक अधूरी मानी जाएगी, जब तक वह विंध्यधाम में आकर मां के चरण रज को प्राप्त नहीं कर लेता। विंध्याचल की भूमि पर भारत वर्ष के महान संतों ने अपनी साधना के क्षण बिताए हैं। त्रिकोण यात्रा करने से नष्ट हो जाते हैं जन्म जन्मांतर के पाप पौराणिक मान्यता है कि मां विंध्यवासिनी के दर्शनोपरांत त्रिकोण यात्रा करने से जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। विंध्यधाम को सिद्धपीठ भी कहा जाता है। माता की असीम कृपा शक्ति अल्प समय में भक्तों को सिद्धियों को देने वाला है। विंध्य पर्वत का ईशान कोण विंध्य क्षेत्र में ही माना जाता है। इसी कोण पर मां विंध्यवासिनी विराजमान हैं, जहां गंगा नदी विंध्य पर्वत को स्पर्श करते हुए बहती है। मान्यता है कि नवरात्र के दिनों में आज भी मां विंध्यवासिनी भक्तों को दर्शन देने के लिए पताका पर विराजती हैं। विंध्याचल ही एकमात्र ऐसा शक्तिपीठ है, जहां देवी के संपूर्ण विग्रह के दर्शन होते है। मां विंध्यवासिनी का यह मंदिर देश के 108 सिद्धपीठों में से एक है। शक्ति का शिव से मिलन शक्ति का शिव से मिलन भागीरथी गंगा के माध्यम से ही संभव हो पाता है। पतित पावनी गंगा विंध्यधाम से मां विंध्यवासिनी के चरण रज लेकर बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी की ओर प्रस्थान करती हैं। काशी में गंग द्वार से गंगाधर बाबा विश्वनाथ का जब जलाभिषेक होता है तो ये शक्ति और शिव के मिलन का दुर्लभ सुयोग होता है। विंध्यधाम में छिपे अनेक रहस्य विंध्यधाम में अनेक रहस्य छिपे हुए हैं। जब कोई साधक तनमय होकर भगवती की आराधना करता है, तब माता की कृपा से इन रहस्यों पर से पर्दा अपने आप ही हटता चला जाता है। रहस्यों को देख व जानकर भक्त स्वर्ग की आनंद की अनुभूति करता है। यहां देवी का अमोघ स्नेह व आशीर्वाद भक्तों पर सदैव बरसता रहता है। विंध्य क्षेत्र का कण-कण देवी ऊर्जा का स्त्रोत है। यहां साधना करने वाले भक्तों को शीघ्र ही सिद्धियां प्राप्त होती हैं।
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