बेगूसराय, 21 जनवरी (हि.स.)। तापमान में हो रहे उतार-चढ़ाव के मद्देनजर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय के ग्रामीण कृषि मौसम सेवा द्वारा उन्नत किसी के लिए किसानों को लगातार एडवाइजरी के माध्यम से जागरूक किया जा रहा है।
कृषि विज्ञान केंद्र बेगूसराय के वरीय वैज्ञानिक एवं प्रधान डॉ. राम पाल ने बताया कि भारत मौसम विज्ञान विभाग से प्राप्त मौसम पूर्वानुमान के अनुसार बेगूसराय के लिए अगले चार दिनों के मौसम पूर्वानुमान अवधि में मौसम के शुष्क रहने का अनुमान है। दिन में मौसम साफ रहने की संभावना है। लेकिन सुबह और शाम में हल्का कुहासा छा सकता है।
इसलिए विलंब से बोई गई दलहनी फसल में दो प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव एक सप्ताह के अंतराल पर दो बार करें। खेतों में कम नमी को देखते हुए सब्जियों की फसल में सिंचाई करें। फ्रेंचबीन, पालक, मटर, फुलगोभी, टमाटर आदि फसलों की सिंचाई एवं फंफुदनाशक दवा का प्रयोग करें। अगर पत्तियों पर राग के धब्बे दिखाई दे तो मन्कोजेब दवा का दो ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।
सरसों की फसल में लाही कीट की नियमित रूप से निगरानी करें। यह सुक्ष्म आकार का कीट पौधों के सभी मुलायम भाग तना एवं फली का रस चूसते हैं। यह कीट मधु-स्त्राव निकालते हैं, जिससे पौधे पर फंगस का आक्रमण हो जाता है, जगह-जगह काले धबे दिखाई देते हैं। ग्रसित पौधों मे शाखाएं कम लगती हैं। पौधे की बढ़वार रुक जाती है पौधे पीले पड़कर सुखने लगते हैं। फलीयां कम लगती है तथा तेल की मात्रा में भी कमी आती है। इस कीट से बचाव के लिए डाईमेथोएट 30 ई.सी. दवा का एक मिली प्रति लीटर पानी की दर से घोल कर छिड़काव मौसम साफ रहने पर करें।
अरहर की फसल में फल मक्खी कीट की निगरानी करें। इस कीट के मगट सबसे पहले अरहर के पौधे के तने में छेद करके उसे खाते हैं। जिससे पौधे के तना एवं शाखाएं सूखने लगती है। बाद में दाना आने पर बीजों को खाते हैं, जिस स्थानों पर मगट खातें हैं, वहां कवक एवं जीवाण उत्पन हो जाते हैं। जिसके कारण ऐसे दाने खान योग्य नहीं रह जाते हैं और उपज में काफी कमी आती है। इस कीट से बचाव के लिए करताप हाईड्रोक्लोराइड दवा 1.5 मिली प्रति लीटर पानी की दर से घोलकर छिड़काव करें। विलंब से बोई गई फसल में दो प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव एक सप्ताह के अंतराल पर दो बार करें।
मटर की फसल में चूर्णिल फफूंदी (पाउडरी मिल्डयु) राग की निगरानी करें। इस रोग में पत्तीयों, फलों एवं तनों पर सफेद चूर्ण दिखाई पड़ती है। इस रोग से बचाव के लिए फसल में कैराथेन दवा का एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी अथवा सल्फेक्स दवा का तीन ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। मटर में नियमित रूप से फली छेदक कीट की निगरानी करें।
बसंतकालीन ईख की रोपाई के लिए मौसम अनुकल हो रहा है, रोपाई के लिए खेत की तैयारी करें। खेत की तैयारी के समय जुताई में 15-20 टन सड़ी हुई गोबर की खाद का व्यवहार करें। यह खाद भूमि की जलधारण क्षमता एवं पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ाती है।
आलू की अगात प्रभेद की तैयार फसलों की खुदाई कर लें। बीज वाली फसल की ऊपरी लत्ती की कटाई कर लें तथा खुदाई के 15 दिनों पूर्व सिंचाई बंद कर दें। पिछात आलू की फसल में कटवर्म या कजरा पिल्लू की निगरानी करें। आलू की फसल में शुरुआती अवस्था से कंद बनने की अवस्था तक यह कीट फसल को नुकसान पहुंचाती है। उपचार के लिए क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. दवा का 2.5 से 3 मिली प्रति लीटर पानी की दर से से घोल बनाकर छिड़काव करें। आलू की फसल पर झुलसा रोग का अधिक प्रकोप होने की संभावना है। बचाव के लिए रिडोमिल नामक दवा का 1.5 ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से घोल बना कर छिड़काव करें। खेतों में नमी को देखते हुए सिंचाई करें।
मक्का की फसल में आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करें। सिंचाई के बाद 25-30 किलोग्राम नेत्रजन प्रति हेक्टेयर की दर से उपरिवेशन करें, जिससे कम तापमान तथा शीतलहर के प्रभाव से फसल पर हुए नुकसान को कम किया जा सके।
पिछात बोई गई गेहूं की फसल में खर-पतवार नियंत्रण कार्य को प्राथमिकता दें। फसल में जिंक की कमी के लक्षण (गेहूं के पौधों का रंग हल्का पीला हो जाना) दिखाई दें रहें हो तो 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट, 125 किलोग्राम बुझा हुआ चुना एवं 125 किलोगाम यूरिया को पांच सौ लिटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें। दीमक कीट का प्रकोप दिखाई देने पर बचाव के लिए क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. दवा का दो लीटर प्रति एकड़ की दर से 20-30 किलो बालू मं मिलाकर शाम के समय खेत में छिड़काव कर सिंचाई करें। विलंब से बोई गई गेहूं की 21 से 25 दिनों की फसल में सिंचाई कर 30 किलो नेत्रजन प्रति हेक्टेयर की दर से उपरिवेशन करें।
पशु चारा बरसीम की सिंचाई बुआई के 20-30 दिन और जई की सिंचाई 20-22 दिन के बाद करें। प्रत्येक कटनी के बाद सिंचाई कर खेतों में दस किलोग्राम नेत्रजन प्रति हेक्टर की दर से उपरिवेशन करें। पशुओं को ज्यादा और अकेले बरसीम नहीं खिलाएं, क्योंकि इससे पशुओं में अपरा रोग हो जाता है।