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बुजुर्गों की सेवा से बड़ा दुनियां में कोई काम नहीं

बेगूसराय, 29 मार्च। आशीर्वाद रंगमंडल द्वारा आयोजित किए जा रहे प्रथम आशीर्वाद मासिक नाट्य श्रृंखला 2023 के तहत बीते रात बेगूसराय के इकलौते प्रेक्षागृह दिनकर कला भवन में प्रभाव क्रिएटिव सोसाइटी आरा द्वारा भिखारी ठाकुर की अमर कीर्ति नाटक ''गंगा स्नान'' प्रस्तुत किया गया। गंगा स्नान की परिकल्पना एवं निर्देशन मनोज कुमार सिंह का था। गंगा स्नान की शुरुआत नाव पर सवार लोक गायकों के गंगा स्तुति के साथ हुई। नाटक में आज के परिवार में उपेक्षित बुजुर्गो और पाखंडी धर्माचार्यों को विषय बनाया गया। गंगा स्नान नाटक के माध्यम से बताने का प्रयास किया गया कि माता-पिता की सेवा से बढ़कर दुनियां में कुछ भी नहीं है। वही परिवार सुखी रहता है जो अपने बुजुर्गों का सम्मान करता है। नाटक की कहानी में मलेछु की शादी को सात साल हो गए हैं, लेकिन वह अबतक निःसंतान है। वह गांव के लोगों के साथ सपरिवार गंगा स्नान करने जाना चाहता है। उसके साथ बूढ़ी मां भी जाना चाहती है, जिसके लिए मलेछु की पत्नी तैयार नहीं है। वह इस शर्त पर तैयार होती है की मां उसकी भी गठरी ढोएगी। भीड़-भाड़ और मेला के कारण गठरी उससे गिर जाती है। गठरी में रखा कपड़ा और सामान खराब हो जाता है। इस गुस्से में पति-पत्नी मिलकर मां को मार पीटकर भगा देते हैं। मेला में उसे एक ठग मिलता है जो साधु के भेष में है। साधु मलेछू बहु का सारा सामान गहना आदि छीन लेता है। इसके बाद उन दोनों को पछतावा होता है। वे मां को मेला में ढूंढकर लाते हैं और उसे ''गंगा स्नान'' कराकर घर लौटते हैं। इस नाटक में गंगा और उसके घाटों के आस-पास की संस्कृति तो है ही, आज के समय की सबसे बड़ी समस्या ''वृद्धजनों'' की उपेक्षा को मार्मिक ढंग से उकेरा गया था। नाटक में कलाकारों ने बताया कि गंगा पूजनीय है तो वृद्ध भी पूजनीय बनें, उन्हें वृद्धाश्रम नहीं पहुंचाएं। मां की चरित्र में आशा पांडेय ने घर-घर के उपेक्षित बुजुर्गों की भावनाओं से दर्शकों को झकझोरा। प्रस्तुति देखकर दर्शकों के आंसू निकल पड़े। मुख्य चरित्र मलेछू की भूमिका में आरा के प्रख्यात रंगकर्मी डॉ. पंकज भट्ट ने दर्शकों को गुदगुदाया, ठहाके लगवाया और रुलाया भी। मलेछू बहु की भूमिका में युवा रंगकर्मी साधना श्रीवास्तव ने पश्चाताप के दृश्य में दर्शकों पर अमिट छाप छोड़ी। छोटे पुत्र अटपट की भूमिका में रंगकर्मी मनोज कुमार सिंह ने अपनी भूमिका के साथ न्याय किया। अटपट बहू के रूप में ऋतु पांडेय ने दोहे और गीतरूपी संवाद से दर्शकों में एक अलग पहचान बनाई। पाखंडी धर्माचार्य तांत्रिक के रूप में लव कुश सिंह थे। मनोशारीरिक प्रयोग में कोरस के रूप में साहेब लाल यादव, लड्डू भोपाली, कृष्णा प्रजापति, गोकुल गुलशन, राजा एवं सुंदरम ने अमिट छाप छोड़ी तथा दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। भोजपुरी लोक रस रंग की प्रस्तुति लोक संगीतकार श्याम बाबू कुमार एवं गायन राजा बसंत एवं मेहंदी राज का था। झाल पर थे शशिकांत निराला, तबला वादन अभय ओझा एवं ढ़ोलक हरिशंकर निराला का था। रूप सज्जा एवं वस्त्र विन्यास था दल संयोजक तिरुपतिनाथ का। गंगा स्नान की परिकल्पना और निर्देशन करने वाले युवा निर्देशक मनोज कुमार सिंह इससे पहले भिखारी ठाकुर के गबरघीचोर, बेटी वियोग, विदेशिया नाटकों का भी निर्देशन कर चुके है। नाटक का उद्घाटन वरिष्ठ रंगकर्मी मिथिलेश राय, भाजपा कला एवं संस्कृति प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष वरुण सिंह, रंगकर्मी कुमार रविकांत, आईएमए के सचिव डॉ. रंजन चौधरी, माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष डॉ. सुरेश प्रसाद राय, प्राचार्य कंचन कुमारी, चित्रकार सीताराम, उप महापौर अनिता राय, प्रो. संजय गौतम, आशीर्वाद के अध्यक्ष ललन प्रसाद सिंह एवं सचिव अमित रोशन ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित कर किया। उद्घाटन सत्र का संचालन किया वरिष्ठ रंगकर्मी दीपक कुमार ने। इस अवसर पर सभी अतिथियों को पौधा देखकर सम्मानित करते हुए पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ाने की अपील की गई।
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