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पितृ पक्ष के अन्तिम दिन अमावस्या पर श्राद्ध पिंडदान कर पितरों को विदाई दी गई

वाराणसी, 14 अक्टूबर (हि.स.)। पितृ पक्ष के अन्तिम दिन अश्वनि अमावस्या (पितृ विसर्जन) पर शनिवार को लोगों ने पूरी श्रद्धा के साथ अपने पूर्वजों का श्राद्ध पिंडदान किया। लोगों ने अपने पितरों को विदाई देकर उनसे घर परिवार में सुख शांति का आर्शिवाद मांगा। पितरों को विदा करने के पूर्व उनसे विगत 14 दिनों तक तर्पण आदि में हुई त्रुटि, किसी पितर को तिलांजलि देने में हुई चूक के लिए क्षमा याचना भी की। गंगा नदी के सभी घाटों पर पिंडदान करने वालों की भीड़ भोर से ही उमड़ी। सिंधिया घाट, दशाश्वमेध घाट, मीरघाट, अस्सी घाट, शिवाला घाट, राजाघाट,पंचगंगा पर लोगों की सर्वाधिक भीड़ रही। पिशाचमोचन स्थित कुंड पर भी लोगों की भीड़ पिंडदान के लिए उमड़ती रही। श्रद्धा भाव के साथ मुंडन कराकर गंगा स्नान के बाद लोगों ने तर्पण और पिंडदान किया। जिनके परिजनों की अकाल मृत्यु हुई थी। उन्होंने ऐसे परिजनों और पूर्वजों के निमित्त पिशाच मोचन पर पिंडदान, तेल और घोड़ा दान किया। यह क्रम भोर से ही चलता रहा। पितृ अमावस्या पर अपने ज्ञात, अज्ञात पितरों का पिंडदान और श्राद्ध लोगों ने किया। पिंडदान के दौरान लोगों ने अपने कुल, गोत्र का उल्लेख कर हाथ में गंगा जल लेकर संकल्प लिया और पूर्वाभिमुख होकर कुश, चावल, जौ, तुलसी के पत्ते और सफेद पुष्प को श्राद्धकर्म में शामिल किया। इसके बाद तिल मिश्रित जल की तीन अंजुली जल तर्पण में अर्पित किया। इस दौरान तर्पण आदि में हुई त्रुटि, किसी पितर को तिलांजलि देने में हुई चूक के लिए क्षमा याचना भी की। अपने पितरों से सुखद, सफल जीवन के लिए आशीर्वाद मांगा। पिंडदान के बाद गाय, कुत्ता, कौवा को पितरों के प्रिय व्यंजन का भोग लगा कर खिलाया। अपने पूर्वजों को पिंडदान तर्पण करने के बाद लोग घर पहुंचे। घर में बने विविध प्रकार के व्यंजनों को निकाल पितरों को चढ़ाकर ब्राह्मणों को खिलाने के बाद खुद प्रसाद ग्रहण किया। अमावस्या पर लोग सायंकाल घर के मुख्य द्वार पर दीप जला कर बांस की कइन में पितरों के लिए अनाज की छोटी-छोटी पोटली बांध कर उनसे अपने लोक लौट जाने का अनुरोध करेंगे। गौरतलब हो कि सनातन धर्म में माना जाता है कि पितृ पक्ष में पूर्वज पंद्रह दिनों तक अपने वंशजों के घरों के आसपास मौजूद रहते हैं। अपनों से सेवा भाव के साथ श्राद्धकर्म कराने के बाद अमावस्या तिथि पर अपने लोक को वापस लौट जाते हैं। माना जाता है कि पितरों के श्राद्धकर्म न करने से सात जन्मों का पुण्य नष्ट हो जाता है।
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