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नेताजी का स्मारक लोगों के दिलों में देशभक्ति की भावना जगाएगा

नई दिल्ली, 23 जनवरी (हि.स.)। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोमवार को कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस का स्मारक और 21 नए नामित द्वीप युवा पीढ़ियों के लिए निरंतर प्रेरणा के स्रोत होंगे। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम में नेताजी के योगदान को दबाने का प्रयास किया गया, लेकिन आज दिल्ली-बंगाल से लेकर अंडमान-निकोबार द्वीप समूह तक पूरा देश नेताजी से जुड़ी विरासत को सहेज कर उन्हें श्रद्धांजलि दे रहा है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाते हुए प्रधानमंत्री ने सोमवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से केंद्र शासित प्रदेश अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के 21 सबसे बड़े अनाम द्वीपों का नामकरण परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर किया। प्रधानमंत्री ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप पर बनने वाले नेताजी को समर्पित राष्ट्रीय स्मारक के मॉडल का भी अनावरण किया। प्रधानमंत्री ने पराक्रम दिवस की बधाई दी और कहा कि यह प्रेरणादायक दिवस देश भर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है। आज का दिन अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के लिए एक ऐतिहासिक दिन है। उन्होंने कहा कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के जीवन के सम्मान में एक नए स्मारक की आधारशिला उस द्वीप पर रखी जा रही है, जहां वे रुके थे। इस दिन को आने वाली पीढ़ियों द्वारा आजादी का अमृतकाल में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में याद किया जाएगा। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने बताया कि यहां पहली बार तिरंगा फहराया गया और भारत की पहली स्वतंत्र सरकार बनी। वीर सावरकर और उनके जैसे कई अन्य वीरों ने इसी भूमि पर देश के लिए तपस्या और बलिदान के शिखर को छुआ था। उन्होंने कहा, “उस अभूतपूर्व जुनून और अपार दर्द की आवाजें आज भी सेल्युलर जेल की कोठरियों से सुनी जाती हैं।” प्रधानमंत्री ने अफसोस जताया कि अंडमान की पहचान स्वतंत्रता संग्राम की यादों के बजाय गुलामी के प्रतीकों से जुड़ी हुई हैं और कहा, “यहां तक कि हमारे द्वीपों के नामों पर भी गुलामी की छाप थी।” प्रधानमंत्री ने तीन मुख्य द्वीपों का नाम बदलने के लिए चार-पांच साल पहले पोर्ट ब्लेयर की अपनी यात्रा को याद किया और बताया, “आज रॉस द्वीप नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वीप बन गया है, हैवलॉक और नील द्वीप स्वराज और शहीद द्वीप बन गए हैं।” आगे उन्होंने कहा कि स्वराज और शहीद नाम खुद नेताजी ने दिए थे, लेकिन आजादी के बाद भी कोई महत्व नहीं दिया गया। प्रधानमंत्री ने कहा, “जब आजाद हिंद फौज की सरकार ने 75 साल पूरे किए तो हमारी सरकार ने इन नामों को फिर से बहाल कर दिया।” प्रधानमंत्री ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संबंधित उन कार्यों पर प्रकाश डाला जो आजादी के तुरंत बाद किए जाने चाहिए थे और बताया कि वे पिछले 8-9 वर्षों में किए गए हैं। उन्होंने कहा कि स्वतंत्र भारत की पहली सरकार देश के इस हिस्से में 1943 में बनी थी और देश इसे और अधिक गर्व के साथ स्वीकार कर रहा है। उन्होंने कहा कि आजाद हिंद सरकार के गठन के 75 साल पूरे होने पर देश ने लाल किले पर झंडा फहराकर नेताजी को श्रद्धांजलि दी। प्रधानमंत्री ने दशकों से नेताजी के जीवन से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने की मांग पर जोर दिया और कहा कि काम पूरी निष्ठा से किया गया। प्रधानमंत्री ने कहा, “आज हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं और कर्तव्य पथ के सामने नेताजी की भव्य प्रतिमा हमें हमारे कर्तव्यों की याद दिला रही है।” यह देखते हुए कि जिन देशों ने अपने आसन्न व्यक्तित्वों और स्वतंत्रता सेनानियों को नियत समय में जनता के साथ जोड़ा और सक्षम आदर्शों को बनाया और साझा किया, वे विकास और राष्ट्र-निर्माण की दौड़ में बहुत आगे निकल गए, प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया कि भारत आजादी के अमृत काल में इसी तरह के कदम उठा रहा है। 21 द्वीपों के नामकरण के पीछे ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के अनूठे संदेश पर प्रकाश डालते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह देश के लिए किए गए बलिदानों और भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम की अमरता का संदेश है। प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया कि 21 परमवीर चक्र विजेताओं ने भारत माता की रक्षा के लिए अपना सब कुछ बलिदान कर दिया। भारतीय सेना के बहादुर सैनिक विभिन्न राज्यों से थे, विभिन्न भाषाओं और बोलियों को बोलते थे और विभिन्न जीवन शैली जीते थे, लेकिन यह मां भारती की सेवा और मातृभूमि के प्रति अटूट समर्पण था जिसने उन्हें एकजुट किया। प्रधानमंत्री ने कहा, “जैसे समुद्र विभिन्न द्वीपों को जोड़ता है, वैसे ही ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ की भावना भारत माता के हर बच्चे को जोड़ती है।” प्रधानमंत्री ने कहा कि अंडमान और निकोबार के द्वीपों का नामकरण न केवल परमवीर चक्र पुरस्कार विजेताओं को बल्कि भारतीय सशस्त्र बलों को भी समर्पित है। आजादी के समय से ही हमारी सेना को युद्धों का सामना करना पड़ा था, इस बात को याद करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे सशस्त्र बलों ने सभी मोर्चों पर अपनी बहादुरी साबित की है। यह देश का कर्तव्य है कि इन राष्ट्रीय रक्षा कार्यों के लिए समर्पित सैनिकों को सेना के योगदान के साथ-साथ व्यापक रूप से मान्यता मिलनी चाहिए। प्रधानमंत्री ने आगे कहा, “सैनिकों और सेनाओं के नाम पर आज देश उस जिम्मेदारी को पूरा कर रहा है और इसे मान्यता मिल रही है।” स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा देने वाले अतीत के अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के साथ तुलना करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि यह क्षेत्र भविष्य में भी देश के विकास को नई गति देगा। प्रधानमंत्री ने कहा, “मुझे विश्वास है, हम एक ऐसे भारत का निर्माण करेंगे, जो सक्षम और आधुनिक विकास की ऊंचाइयों को प्राप्त करेगा।”
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