शिक्षा विभाग के कार्यावधि पत्र पर प्राथमिक शिक्षा साझा मंच ने उठाए बड़े सवाल
बेगूसराय, 08 सितम्बर (हि.स.)। बिहार सरकार में शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के.के. पाठक द्वारा शिक्षा व्यवस्था में सुधार के नाम पर लगातार जारी किए जा रहे पत्रों से मामला उलझता जा रहा है। अब शिक्षा का अधिकार अधिनियम की चर्चा करते हुए जारी किए गए पत्र पर प्राथमिक शिक्षक साझा मंच ने बड़ा सवाल उठाया है।
प्राथमिक शिक्षक साझा मंच के समन्वय समिति सदस्य रंजन कुमार ने कहा है कि शिक्षा विभाग द्वारा हालिया जारी प्रेस नोट राज्य की जनता को ना केवल भ्रमित करने के उद्देश्य को प्रमाणित करता है बल्कि शिक्षकों और सरकारी विद्यालयों की प्रतिष्ठित छवि को धूमिल और अपमानित करने के शासकीय यत्नों को प्रतिपुष्ट करता है।
इस प्रेस नोट के माध्यम से पूरे राज्य को यह संदेश देने की आधिकारिक कोशिश की गई है कि बिहार के सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती और शिक्षक पढ़ाना नहीं चाहते। कार्य दिवस और विद्यालय के शिक्षण दिवस से संबंधित तथ्यों की प्रस्तुति काफी सतही और भ्रामक है। विभाग ने अप्रैल 23 से मार्च 24 वाले शैक्षणिक सत्र के कुल 253 कार्य दिवसों में से फरवरी और मार्च के 46 कार्य दिवसों की गणना गायब रखते हुए यह बताया है कि पूरे बिहार के प्रारंभिक स्कूलों में अपेक्षित 220 दिनों के विरुद्ध औसतन 180 से 190 दिन मात्र ही शिक्षण कार्य होने हैं।
उक्त अवधि के दौरान प्रति कार्य दिवस के लिए कार्य के घंटों की गणना नहीं की गई है। उक्त सारणी के आंकड़ों में 38 जिलों के विरुद्ध मात्र छह जिलों के आकलन पर घोषित और विभिन्न अघोषित अवकाशों के कारण विद्यालय बंद रहने के छह उदाहरण गिनाए गए हैं, जो पूरे बिहार के परिप्रेक्ष्य में बिल्कुल ही अनुमान्य किए जाने योग्य नहीं हो सकते।
इस परिप्रेक्ष्य में ध्यान देने योग्य तथ्य हैं कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के विद्यालयों में ग्रीष्मावकाश नहीं होते हैं। शीतलहर के कारण विद्यालय बंद रखने के बावजूद शिक्षकों को विद्यालय में उपस्थित रहकर कार्यालय कार्यों को निष्पादित करना होता है। स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस, अन्य विधि व्यवस्था संबंधी कारणों से तैनात किए गए पुलिस बल का ठहराव कुछ गिने चुने स्कूलों के एक-दो कमरों में होता है, इससे शिक्षण कार्य प्रभावित नहीं होते हैं।
श्रावणी मेला में कांवरियों के रुकने की व्यवस्था के लिए कतिपय विद्यालय के परिसर रात में इस्तेमाल होते हैं, दिन में शिक्षण कार्य संचालित रहता है, पठन-पाठन बाधित नहीं होता है। विभिन्न प्रकार के आयोगों की परीक्षा में जिला और प्रखंड मुख्यालय के गिने चुने माध्यमिक स्तर के स्कूल का इस्तेमाल अधिकतर रविवार को होता है. बोर्ड की परीक्षाएं भी जिला और प्रखंड मुख्यालय के माध्यमिक/उच्च माध्यमिक विद्यालयों और कॉलेजों में होती है।
प्रारंभिक विद्यालय इससे सर्वथा अछूते होते हैं और उसमें शिक्षण कार्य थोड़ा बहुत प्रभावित होने के बावजूद चलते रहते हैं। केवल प्रारंभिक स्कूलों से कुछ शिक्षकों को वीक्षण कार्य में तैनात किया जाता है, जिसे शिथिल किए जाने पर शिक्षकों को कोई आपत्ति नहीं होगी। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 की धारा-19 एवं 25 के तहत स्कूलों के लिए निर्धारित मानदंड और मानकों के अनुरूप प्राथमिक और मिडिल स्कूल के लिए केवल अलग-अलग कार्य दिवस ही नहीं निर्धारित किए गए हैं।
बल्कि शिक्षण घंटों का निर्धारण भी किया गया है जिसके अनुसार प्राथमिक विद्यालय के लिए दो सौ कार्य दिवसों में आठ सौ घंटे तथा मध्य विद्यालयों के लिए 220 कार्य दिवसों में एक हजार घंटे का शिक्षण कार्य, पूरे शैक्षणिक सत्र के दौरान पूर्ण करने का लक्ष्य दिया गया है। इसी क्रम में आगे की पूर्व तैयारी के घंटों को समाहित रखते हुए प्रति सप्ताह 45 घंटे शिक्षकों के शिक्षण कार्य के लिए प्रावधानित किए गए हैं। यहां ध्यान देने योग्य बात है कि शिक्षक अपने आगे के कार्यों की पूर्व तैयारी कहां करेंगे। इसके लिए अधिनियम में किसी विशिष्ट जगह का निर्धारण नहीं किया गया है।
शिक्षा शास्त्रियों एवं शैक्षिक प्रक्रिया के अकादमिक अनुसंधान विशेषज्ञों की मानें तो शिक्षा विभाग के शासकीय दबाव में शिक्षकों की अध्ययनशीलता, स्वाध्याय की प्रवृति और नवाचारों के अन्वेषण के प्रति मननशीलता निरंतर घट रही है। शिक्षा अधिकार कानून में इस मसले की संवेदनशीलता को अंगीकार करते हुए शिक्षकों के लिए साप्ताहिक रूप से 45 घंटों की व्यवस्था इसीलिए है कि शिक्षक, विद्यालय में अमूमन चार से पांच घंटे प्रति कार्य दिवस शिक्षण कार्य के निष्पादन के बाद कम से कम तीन से चार घंटे मनोयोग पूर्वक स्वाध्याय सहित उन सभी जरूरी चीजों पर अपना ध्यान दे सकेंगे।
रंजन कुमार ने कहा कि शिक्षा विभाग बिहार सरकार की ओर से जारी प्रेस नोट का खंडन करते हुए उन्होंने कि बिहार के प्रारंभिक शिक्षक, शिक्षा अधिकार अधिनियम में प्रावधानित 200 से 220 कार्य दिवसों के विरुद्ध इस शैक्षणिक सत्र में 253 कार्य दिवस विद्यालयों में कार्य पर तैनात रहेंगे। अधिनियम में निर्देशित पूरे शैक्षणिक सत्र 2023-24 के दौरान वांछित आठ सौ से एक हजार शिक्षण घंटे के विरुद्ध विद्यालय में रहकर 1638 शिक्षण घंटे अपने कार्यों का निष्पादन करेंगे।
अगर इसे प्राथमिक और मध्य विद्यालयों की जरूरतों के हिसाब से अलग-अलग देखा जाए तो प्राथमिक स्कूल में प्रतिदिन अपेक्षित चर घंटे के विरुद्ध सात घंटे काम करते हुए शिक्षक पूरे शैक्षणिक सत्र में वांछित आठ सौ घंटे से अधिक के 838 घंटे (119 कार्य दिवस के बराबर) अतिरिक्त रूप से विद्यालय कार्य निष्पादित करेंगे। मिडिल स्कूलों में भी शिक्षक प्रतिदिन पांच घंटे से अधिक सात घंटे काम करके वांछित एक हजार शिक्षण घंटों के विरुद्ध पूरे शैक्षणिक सत्र में 638 घंटे अधिक काम करके 91 अतिरिक्त कार्य दिवस अपने काम में जोड़ लेंगे।
विभागीय प्रेस नोट में शीतलहर के अघोषित अवकाश के दौरान शिक्षकों को विद्यालय में बने रहने संबंधी पूर्व प्रदत्त आदेश के कारणों की व्याख्या आधिकारिक तौर पर दर्ज नहीं है। लू के दौरान बमुश्किल 15 से 20 दिन, विद्यालय अवधि में महज आधे से एक घंटे की कटौती तथा शेष बचे छह से साढ़े छह घंटे के कार्यावधि को विद्यालय बंद के रूप में गणना कर लेना, अधिकारियों की शिक्षकों के प्रति पूर्णरूपेण पूर्वाग्रही तथा अकारण परेशान और प्रताड़ित करनेवाली मानसिकता का परिचायक है।
उन्होंने कहा कि विभाग को यदि पूर्ण शैक्षणिक सत्र के दौरान शिक्षा अधिकार अधिनियम के अनुरूप विद्यालयों के कार्यावधि की गणना को लागू करना है तो प्राथमिक एवं मध्य विद्यालय के लिए क्रमशः दो सौ दिन और आठ सौ घंटे तथा 220 दिन और एक हजार घंटे की व्यवस्था को एक साथ लागू करने पर पुनर्विचार करे। सरकार के वेकेशनल संस्था के रूप में अंगीकृत विद्यालयों के लिए स्थानीयता के सापेक्ष सलाना 60 दिन के अवकाश संबंधी पूर्व प्रदत्त व्यवस्था को अक्षुण्ण रखने पर भी पुनर्विचार करे।