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राजस्थान का जल संकट सारे देश के लिए चेतावनी

केंद्रीय भू-जल बोर्ड और राजस्थान के भू-जल विभाग की डायनामिक ग्राउंड वाटर रिसोर्स रिपोर्ट में 2025 तक जयपुर अजमेर, जैसलमेर और जोधपुर में पानी की उपलब्धता का आकलन शून्य किया गया है। भगवान ना करे, जयपुर अजमेर, जैसलमेर और जोधपुर में कभी ऐसा हो। बावजूद इसके इस रिपोर्ट को महज रिपोर्ट समझने की जरूरत नहीं है। यह सारे देश के लिए गंभीर चेतावनी है। भारत के कई हिस्सों में जमीन धंस और फट रही है। मकानों में दरारें आ रही हैं। राजस्थान के बीकानेर और बाड़मेर जिलों में भी ऐसा हो चुका है। कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश में बांदा जिले के मटौंध गांव के आसपास खेत फटने लगे थे।

यह समझने की जरूरत है कि ऐसा उन स्थानों पर होता है जहां भू-जल खत्म जाता है। ऐसी स्थिति ना आए, इसके लिए वर्षा ऋतु में परंपरागत जल संग्रहण जरूरी है। इसकी सबसे आसान विधि मानसून आने से पूर्व खेतों पर मेड़ बनानी चाहिए। फिर मेड़ पर पेड़ लगाना होगा। यह आज की नहीं, हमारे पुरखों की परंपरागत विधि है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कैच द रेन का आह्वान इसी विधि की ओर इशारा करता है। ऐसा करने से तालाब, कुआं, नाला, सामुदायिक जलाशयों में बरसात का पानी भर जाता है। इससे भू-जल का स्तर आसानी से ऊपर आता है और कुछ ही सालों में यह संकट हमेशा-हमेशा के लिए दूर हो जाता है।

गांवों में यह संकट ना आए, इसके लिए खेतों और मरवा जमीन में कीटनाशक दवा का छिड़काव बंद होना चाहिए। इस दवा के छिड़काव से मिट्टी को पानी की जरूरत ज्यादा पड़ती है। उर्वरक क्षमता कम हो जाती है।खेत के मित्र जीव-जंतु समाप्त हो जाते हैं। इसका एकमात्र निदान प्राकृतिक और परंपरागत खेती की ओर लौटने से ही संभव है। यह सभी मानते हैं कि प्रकृति ने इनसान की जरूरत के हिसाब से हर चीज बनाई है। इसलिए उसका उतना ही उपयोग किया जाए, जितना जरूरी है। उसकी बरबादी एक न दिन तबाही लाती है। इसलिए पानी की बरबादी कतई न की जाए। इसी बरबादी का नतीजा है कि आज मनुष्य को पेयजल के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है।

इस संबंध में राजस्थान भू-जल विभाग के मुख्य अभियंता सूरज भान सिंह का कहना है कि अटल भू-जल योजना के तहत पिछले चार वर्ष में 15 हजार जल संचयन संरचनाएं बनाई गईं। इसके अलावा 30 हजार से अधिक किसानों को ड्रिप और स्प्रिंकलर की ओर मोड़कर पानी खपत कम करने की कोशिश भी की गई। इससे 17 जिलों की 1129 ग्राम पंचायतों में से 189 ग्राम पंचायतों में जलस्तर बढ़ा है। 289 ग्राम पंचायतों में स्थिति में मामूली सुधार हुआ है। दूसरा तथ्य यह है कि राजस्थान की सकल जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान 27 प्रतिशत है और कृषि में भू-जल की हिस्सेदारी 69 प्रतिशत यानी राजस्थान की कुल जीडीपी में भू-जल की हिस्सेदारी 18 प्रतिशत है।

दुनिया में ऐसे कई देश हैं, जहां लोग पेयजल के लिए तरस रहे हैं। इनमें दक्षिण अफ्रीका की राजधानी केपटाउन प्रमुख है। केपटाउन को दुनिया का पहला जलविहीन शहर घोषित किया गया है। देश में स्थिति सुखद है, ऐसा नहीं है। केंद्रीय भू-जल बोर्ड व राजस्थान के भू-जल विभाग ने रिपोर्ट में खुलासा किया है कि 2025 में पानी का संकट काफी विकराल रूप ले लेगा। राजस्थान के चार जिलों जयपुर, अजमेर, जोधपुर और जैसलमेर में पानी खत्म हो जाएगा। इसकी वजह है बारिश के पानी का भूमि में स्टोर ना हो पाना। जितना भू-जल जमा होता है, उससे ज्यादा की खपत होती है। मरू प्रदेश राजस्थान की प्यास कैसे बुझेगी, आज यह यक्ष प्रश्न हम सबके सामने खड़ा है। राजस्थान में हर साल बारिश और अन्य स्रोतों से जितना पानी रिचार्ज होता है उससे 5.49 बिलियन क्यूबिक मीटर ज्यादा पानी इस्तेमाल हो रहा है। यानी भविष्य की बचत को आज ही खर्च किया जा रहा है। तब तो यह नौबत आनी ही थी। मगर अभी कुछ भी नहीं बिगड़ा। खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़ लगाकर इस नौबत को टाला जा सकता है।

(लेखक, खेत पर मेड़ और मेड़ पर पेड़ अभियान के प्रणेता हैं। वह इसके लिए पद्मश्री से अलंकृत हो चुके हैं।)


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