समीर विद्वांस का नाम भले फिल्म ‘सत्यप्रेम की कथा’ के जरिये ही हिंदी सिनेमा के दर्शकों ने पहली बार सुना हो लेकिन मराठी सिनेमा पर नजर रखने वाले उनकी कलाकारी के बारे में खूब जानते हैं। उनकी बनाई फिल्म ‘आनंदी गोपाल’ जो देश की पहली महिला फिजीशियन की सच्ची कहानी कहती है, देश दुनिया में खूब सराही जा चुकी है। इसके पहले वह ‘मला काहिच प्रॉब्लन नाही’ और ‘डबल सीट’ से भी अपनी तरफ फिल्म जगत का ध्यान खींच चुके थे, लेकिन ‘आनंदी गोपाल’ ने उनका आत्मविश्वास न सिर्फ बढ़ाया बल्कि हिंदी फिल्म जगत के नामी फिल्म निर्माताओं में से एक साजिद नाडियाडवाला के दरवाजे भी उनके लिए खुल गए। ‘सत्यनारायण की कथा’ नाम से इस फिल्म का एलान साजिद ने तब किया था जब कार्तिक को फिल्म ‘दोस्ताना 2’ से निकाले जाने की खबर खूब सुर्खियां बना रही थी।
कथा सत्यप्रेम की
फिल्म ‘सत्यप्रेम की कथा’ में सत्यप्रेम हीरो का नाम है और कथा नाम है इसकी नायिका का। यानी कि लैला मजनू, हीर रांझा, शीरी फरहाद, सपना वासू और राज सिमरन जैसा कुछ कुछ बनाने की कोशिश यहां की जा रही है। निर्देशक समीर विद्वांस के सुख दुख के साथी रहे हैं, उनके लेखक करण श्रीकांत शर्मा। दोनों ने मराठी सिनेमा से हिंदी सिनेमा तक आने की ये लंबी छलांग साथ साथ लगाई है। गैरहिंदी भाषी निर्देशकों का हिंदी फिल्में बनाना कोई नई बात नहीं हैं। हां, मनमोहन देसाई के जमाने में के के शुक्ला और कादर खान जैसे लोग कहानी का कनेक्शन गंगा जमुनी संस्कृति से जोड़े रखने में बड़ी भूमिका निभाते थे। समीर और करण के सामने फिल्म ‘सत्यप्रेम की कथा’ में सबसे बड़ी चुनौती इसे उन इलाकों से जोड़ पाने की रही है जहां कहते हैं कि हिंदी फिल्मों का कारोबार मुंबई के बाद सबसे ज्यादा होता है। और, अपनी इस पहली हिंदी कोशिश में दोनों सफल भी होते दिख रहे हैं।
कार्तिक के सामने वरुण से आगे जाने की चुनौती
कहानी बहुत चौंकाने वाली नहीं है ‘सत्यप्रेम की कथा’ की, ये बात दर्शक फिल्म का ट्रेलर और इसके गाने देखकर समझ ही चुके हैं। करण जौहर ऐसी कहानियों के मास्टर रहे हैं। उनकी अगली फिल्म ‘रॉकी और रानी की प्रेम कहानी’ का टीजर भी ‘सत्यप्रेम की कथा’ जैसा ही है। यहां सत्यप्रेम के सामने अपनी कथा को पाने, परिवार को मनाने और उसे खोने का डर मिटाने की चिंताएं हैं। वह अलमस्त युवा है। जमाने की परवाह उसे नहीं है। और, कहानी की दिक्कत भी यहां सबसे ज्यादा यही है कि इसका जमाने से वाकई कोई लेना देना नहीं है। फिल्म ‘सत्यप्रेम की कथा’ उस काल्पनिक लोक की कथा है जो वास्तविकता की देहरी लांघते ही थक जाती है। चुनौती फिर कार्तिक आर्यन के सामने आती है कि वह अपनी कॉमिक इमेज से निकलकर वरुण धवन की छाया से दूर हो पाएंगे या फिर उनकी जैसी मुस्कुराहट, उनकी ही जैसी छिछोरी हरकतों वाले किरदार करके उन युवाओं में घुसपैठ करने की कोशिश करते रहेंगे, जिनको ‘अवतार 2’ और ‘फास्ट 10’ जैसी फिल्मों में बेहतर आनंद मिलने लगा है। ‘बदरीनाथ की दुल्हनिया’ के वरुण की याद बार बार दिलाने वाले कार्तिक से बेहतरी की अभी तमाम गुंजाइश हैं और उम्मीद है कि वे ‘फ्रेडी’ जैसी फिल्मों से अपना नाम अभी आगे और चमकाएंगे।
कियारा के सहज अभिनय ने जीते दिल
कियारा आडवाणी निर्देशक की अदाकारा हैं। उनको निर्देशक अच्छा मिले तो वह दमक उठती हैं। यहां भी कियारा ने अपने अभिनय से अपने आलोचकों को चौंकाया है। वह सहज और सरल रहकर जब अपने संवाद बोलती हैं तो उनके चेहरे के भाव देखने लायक होते हैं। फिल्म ‘सत्यप्रेम की कथा’ का बजट संतुलित रखने के लिए की गई कसरत इसके सहायक कलाकारों में गजराज राव और सुप्रिया पाठक के अलावा शामिल कलाकारों में दिखती है। फिल्म के फ्लेवर के हिसाब से लिए गए ये कलाकार फिल्म का संबल बनने में मदद करते हैं। गजराज राव भी फिल्म ‘मजा मा’ के बाद फिर से कुछ नया करने की कोशिश करते तो दिखते हैं, लेकिन उनकी अदाकारी की भी अपनी सीमाएं हैं। सजना धजना सुप्रिया पाठक की अदाकारी से संगत बिठा नहीं पाता है, वह बेहतरीन कलाकार हैं लेकिन फिल्म ‘सत्यप्रेम की कथा’ का उनका किरदार उनकी रंगत से मेल खाता नहीं दिखता। कथा के माता पिता बने सिद्धार्थ रंदेरिया और अनुप्रिया पटेल का काम यहां उल्लेख करने लायक है।
ठोस सामाजिक संदेश देने में सफल रहे समीर
फिल्म ‘सत्यप्रेम की कथा’ विचार के स्तर पर ही एक दमदार फिल्म है। हालांकि, ध्यान से देखें तो ये फिल्म इसी तरह की कहानियों पर बनी शाहरुख खान, सलमान खान, अभिषेक बच्चन और ऋतिक रोशन की दर्जन भर फिल्मों के कॉकटेल जैसी ही है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफर अयांका बोस ने भी कुछ खास नई छवियां इस फिल्म में गढ़ी नहीं हैं। शाहरुख, सलमान, अभिषेक और ऋतिक की फिल्मों की सिनेमैटोग्राफर रही अयनांका ने कार्तिक की पिछली फिल्म ‘फ्रेडी’ में खूब प्रभावित किया था लेकिन यहां कार्तिक में वह उन सारे सितारों की छवियां तलाशती दिखती हैं जिनका जिक्र मैंने ऊपर किया है। दो घंटे 24 मिनट की फिल्म को एक दर्शनीय फिल्म बनाने के लिए चारु श्री रॉय ने संपादन में खासी मेहनत की है, लेकिन फिर भी तमाम जगहों पर एक दृश्य से दूसरे दृश्य का पारगमन (ट्रांजिशन) अखरने वाला है। फिल्म का संगीत जैसा है, वह सबको पता चल ही चुका है। ‘पसूरी’ के रीमिक्स पर बने फोकस ने फिल्म के दूसरे गानों की तरफ पहले श्रोताओं का ध्यान नहीं जाने दिया। इस सबके बावजूद अपनी पहली हिंदी फिल्म बनाने वाले निर्देशक समीर विद्वांस ने कार्तिक और कियारा की जोड़ी के जरिये एक ठोस सामाजिक संदेश देने में सफलता पाई है।