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सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया वन चैनल पर लगी केंद्र की पाबंदी हटाई

नई दिल्ली, 5 अप्रैल । सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मीडिया द्वारा सरकार की नीतियों की आलोचना को राष्ट्रविरोधी नहीं करार दिया जा सकता है। मीडिया की जिम्मेदारी बनती है कि वो सच को सामने रखें। केरल के मीडिया वन चैनल पर प्रतिबंध के केंद्र के फैसले को खारिज करते हुए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए इसका स्वतंत्र रहना जरूरी है। मीडिया से सिर्फ सरकार का पक्ष रखने की उम्मीद नहीं की जाती। कोर्ट ने सरकार की इस दलील को खारिज कर दिया कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मसला होने की वजह से वो सिर्फ सीलबंद कवर में ही जानकारी कोर्ट को दे सकती है। कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा की दुहाई यूं ही नहीं दी जा सकती है। सीलबंद कवर का बेहद कम मामलों में इस्तेमाल होना चाहिए और इसके लिए सरकार को कोर्ट को आश्वस्त करना होगा। सरकार को ये विशेषाधिकार नहीं है कि वो कोर्ट में उसके खिलाफ आये पक्ष को जानकारी ही नहीं दे। ये लोगों के अधिकार का हनन है। 15 मार्च, 2022 को कोर्ट ने मीडिया वन के प्रसारण पर लगी रोक को अंतरिम रूप से हटा दिया था। कोर्ट ने कहा था कि चैनल को लेकर इंटेलिजेंस इनपुट चैनल से साझा किया जाए या नहीं, इस पर बाद में फैसला किया जाएगा। सुनवाई के दौरान चैनल की ओर से वकील दुष्यंत दवे ने कहा था कि चैनल पिछले 11 सालों से चल रहा है। चैनल का लाइसेंस दस वर्षों का था। लाइसेंस समाप्त होने के दो महीने के बाद केंद्र सरकार ने प्रसारण की अनुमति बढ़ा दी थी। मीडिया वन चैनल ने केरल हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। 10 मार्च, 2022 को सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी और दुष्यंत दवे ने कहा था कि मीडिया वन न्यूज चैनल पिछले 11 साल से प्रसारण कर रहा है। इस चैनल में करीब साढ़े तीन सौ कर्मचारी काम करते हैं। रोहतगी ने कहा था कि केरल हाई कोर्ट ने इस मामले में सीलबंद लिफाफे की रिपोर्ट के आधार पर फैसला किया। दुष्यंत दवे ने कहा था कि इस चैनल के ढाई करोड़ दर्शक हैं। चैनल को केंद्र सरकार ने 2019 में डाउन लिंक करने की अनुमति दी थी। 2 मार्च, 2022 को केरल हाई कोर्ट ने केंद्र सरकार के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार किया था। केंद्र ने 31 जनवरी, 2022 को चैनल पर रोक लगाई थी।
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