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आनंद पाण्ड़ थे भगवान बिरसा मुंडा के राजनीतिक गुरु, आनंद पांडे नहीं

खूंटी, 10 दिसंबर (हि.स.)। अमर शहीद भगवान बिरसा मुंडा के गुरु रहे आनंद पाण्ड़ (आनंद स्वांसी) थे, आनंद पांडे नहीं। इतिहासकारों ने आनंद पाण्ड़ को इतिहास के साथ छेड़छाड़ कर उसे आनंद पांडे कर दिया। यह पाण्ड़अथवा स्वांसी समाज का अपमान है।

खुद को आनंद पाण्ड़ का वंशज बताने वाले सहदेव स्वांसी, तेतरू स्वांसी और रामचंद्र स्वांसी ने कहा कि आनंद पाण्ड़ का नाम इतिहास में सुधारने के लिए अपील स्वांसी समाज द्वारा की गई, लेकिन किसी ने इस ओर ध्यान नही दिया। इससे समाज के लोग व्यथित हैं और खुद को अपमानित महशुस कर रहे है। वंशजों ने बताया कि मूल रूप से आनंद पाण्ड़ तोरपा प्रखंड के गौड़बेड़ा गांव रहने वाले थे।

स्वांसी समाज के लोगों का कहना है कि पाण्ड़ स्वांसी समाज और अनुसूचित जाति की श्रेणी में आता है, जबकि पांडे सवर्ण जाति में आते हैं, लेकिन आनंद पाण्ड़ को इतिहासकारों ने छेड़छाड़ कर उसे आनंद पांडे कर दिया। सहदेव स्वांसी ने कहा कि आज बिरसा मुंडा की भगवान की तरह पूजा होती है। उनकी ख्याति झारखंड से निकल कर देश-विदेश तक फैल गयी, लेकिन भगवान बिरसा मुंडा को इस मुकाम तक पंहुचाने में उनके राजनीतिक गुरु रहे आनंद पाण्ड़ को इतिहासकारों ने उपेक्षित कर दिया और उन्हें कभी सही सम्मान नही मिल पाया, जिसका वे हकदार थे। स्वांसी समाज के लोगो का कहना है कि भगवान बिरसा मुंडा की अलौकिक प्रतिभा को पहचान कर उसे निखार कर इस मुकाम तक आनंद पाण्ड़ ने पहुंचाया, उनकी पूरी तरह उपेक्षा की गई। स्वांसी समाज के लोगों की मांग है कि जितना नाम भगवान बिरसा मुंडा का है, उसी तरह उनके गुरु आनंद पाण्ड़ का भी सम्मान हो और उनकी प्रतिमा को भी सामने लाया लगाया जाए, ताकि आनेवाले पीढ़ी उनके बहुमूल्य योगदान को याद करें।

बिरसा ने गोड़बेड़ी में सीखी तीर-धनुष से युद्ध की कला

गौड़बेड़ा के रहने वाले स्वांसी समाज के लोगों ने पूर्वजों के बारे में जानकारी दी और कहा कि गौड़बेड़ा के जमींदार जगमोहन सिंह के यहां आनंद पाण्ड़ या आनंद स्वांसी मुंशी का काम किया करते थे आनंद स्वांसी। वर्ष 1887 के आसपास चाईबासा के स्कूल के वार्डेन ने बिरसा मुंडा के कपड़ाें को किसी बात को लेकर बाहर फेंक दिया था। वहीं जगमोहन सिंह की नजर बिरसा पर पड़ी, तो बिरसा मुंडा को लेकर वे बंदगांव होते हुए गौड़बेड़ा ले आये, जहां वह मुंशी आनंद स्वांसी के साथ रहने लगे थे। आनंद स्वांसी उर्फ आनंद पाण्ड़ द्वारा गांव एक पीपल पेड़ के नीचे कुटिया बनाकर रखी थी, जहां जड़ी-बूटी से लेकर महाभारत और रामायण की बातों को आनंद पाण्ड़ बिरसा में बताया करते थे। साथ ही तीर धनुष से कैसे युद्ध लड़ा जाता है, इसकी भी शिक्षा बिरसा मुंडा को आनंद पाण्ड़ ने दी।

आज भी जिंदा वह पीपल पेड़, जसके नीचे बिरसा मुंडा ने ली थी शिक्षा

गौड़बेड़ा में आज भी वह पीपल का पेड़ जिंदा है, जिसके नीचे बिरसा मुंडा ने शिक्षा ग्रहण किया था। हालांकि जहां कुटिया थी, अब उस जगह पर एक स्कूल बना दिया गया है, ताकि बिरसा की याद बना रहे। इसके अलावा लकड़ी का बना हुआ कुआं, जहां बिरसा स्नान करते थे, वह भी मौजूद है। समुद्र नाम का पेड़ सिर्फ गौड़बेड़ा में ही है, जिसकी छाल का उपयोग जड़ी-बूटियों के निर्माण में किया जाता था।

गुरु और शिष्य को बराबर सम्मान मिले : मसीह गुड़िया

आनंद पाड़ के संबंध में खूंटी जिला परिषद के अध्यक्ष मसीह गुड़िया ने कहा कि जो सम्मान भगवान बिरसा मुंडा को मिल रहा है, वैसा ही सम्मान उनके गुरु आनंद स्वांसी को भी मिलना चाहिए। इतिहासकारों से जो भी त्रुटि हुई है, उसमें सुधार के लिए फिर से मुख्यमंत्री को अवगत कराया जाएगा, ताकि उनके माध्यम से इसकी फिर से जांच कर आनंद पाण्ड़ को सही सम्मान मिल सके।

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