महेश वर्मा
भारत जैसे विकासशील देश में एमएसएमई सेक्टर को अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी माना जाता है। एमएसएमई न सिर्फ रोजगार सृजन का महत्वपूर्ण स्रोत है, बल्कि यह देश के औद्योगिक विकास में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। एमएसएमई सेक्टर की विशेषता इसका अनूठा लचीलापन और अनुकूलनशीलता है। यह विशेषता इसे आर्थिक उतार-चढ़ाव के दौरान भी स्थिर रखती है। एमएसएमई के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए केंद्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम व उद्यम मंत्री नारायण राणे ने इसके रास्ते में आने वाली बाधाओं की पहचान की और उनके उपाय तलाशे व लागू किए। इसके फलस्वरूप आज देश में एमएसएमई उद्योग ने एक लंबी छलांग लगाई। 2006 से एमएसएमई के स्थापना से लेकर 2021 तक जो विकास हुआ, उससे ज्यादा 2021 से 2023 के दौरान इस सेक्टर के प्रगति पथ को प्रशस्त करने का काम राणे के दूरदर्शी निर्णय ने किया है।
एमएसएमई के अंतर्गत विशेष कर नए उद्यमी आवश्यक दस्तावेजों की कमी के कारण सरकारी योजनाओं और बैंकों से कर्ज की सुविधाएं लेने में अक्षम थे। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना ऐसे ही उद्यमियों की सहायता के लिए शुरू की गई। इस योजना के तहत नए उद्यमियों के अपना व्यवसाय शुरू करने या वर्तमान उद्यमियों के व्यवसाय के विस्तार के लिए बिना किसी गारंटी वित्तीय सहायता दी जाती है और क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट फॉर माइक्रो एंड स्मॉल एंटरप्राइजेज के अंतर्गत कोलेटरल-फ्री ऋण दिया जाता है। वित्तीय सुविधाओं का लाभ उठाने से वंचित उद्यमियों के लिए 11 जनवरी 2023 को ‘उद्यम असिस्ट प्लेटफॉर्म’ लॉन्च किया गया। पहले ही साल इस प्लेटफॉर्म पर सवा करोड़ से अधिक असंगठित क्षेत्र के सूक्ष्म उद्योगों के रजिस्ट्रेशन हुए और उन्हें ऋण लेने में आसानी हुई।
एमएसएमई विभिन्न उद्योगों में विविधता लाते हैं और नवाचार को प्रोत्साहित करते हैं। इसके लिए अक्सर ये उद्यम नई तकनीक और व्यवसाय के नए मॉडल अपनाते हैं। इनका उद्योगों की समग्र प्रगति भारी योगदान होता है। इसे ध्यान में रखते हुए सरकार ने कई कदम उठाए हैं। उदाहरण के लिए क्लस्टर विकास कार्यक्रम के तहत खादी विकास और ग्रामोद्योग आयोग या केवीआईसी के माध्यम से लगभग 9 करोड़ रुपयों की लागत से कर्नाटक में सेंट्रल स्लिवर प्लांट शुरू किया गया। प्लांट का उद्देश्य है खादी संस्थानों की कच्चे माल की लागत कम करने में मदद करना और उत्पादक में 40 प्रतिशत तक बढ़ोतरी करना।
इसी के तहत महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट फॉर रूरल इंडस्ट्रियलाइजेशन या ग्रामीण औद्योगीकरण के लिए महात्मा संस्थान के पुनरुद्धार की भी योजना है। इस योजना के तहत महाराष्ट्र के वर्धा जिले में भी जल्द सिल्वर प्लांट शुरू किया जाएगा। ये प्लांट इन्क्यूबेशन सेंटर्स के रूप में शुरू किए जा रहे हैं। इन्क्यूबेशन सेंटर्स का उद्देश्य नवीन विचारों और तकनीक को प्रोत्साहन देना है।
एमएसएमई में खादी उद्योग पर ध्यान देने का विशेष कारण है। पिछले नौ साल में खादी का उत्पादन तीन गुना बढ़ा है। इसकी बिक्री 2014-2015 में महज 1170 करोड़ रुपये थी। खादी की बिक्री 2022-2023 में बढ़कर लगभग छह हजार करोड़ रुप.े हो गई है। आज हम अपनी जरूरतों के अलावा 20 से अधिक देशों को खादी उत्पाद निर्यात कर रहे हैं। आज यह व्यवसाय उत्पादन से जुड़े लाखों लोगों के अलावा भी कई लोगों की जीविका का साधन बन गया है, जिनमें डिजाइनर, निर्यातक, व्यापारी, और बैंक तक शामिल हैं। यहां तक कि हजारों सरकारी कर्मचारियों की नौकरी भी हथकरघा और खादी व्यापार की वजह से चल रही है।
खादी के अलावा एमएसएमई सेक्टर के दूसरे उद्योगों की भी मदद की जा रही है। देश भर में 20 प्रौद्योगिकी केंद्र और 100 विस्तार केंद्र खोलने की योजना शुरू की गई है, जो उत्पादन सुविधाओं, जनशक्ति विकसित करने, परामर्श प्रदान करने और सर्वोत्तम प्रथाओं को अपनाने के माध्यम से प्रतिस्पर्धी बढ़त विकसित करके मौजूदा और संभावित एमएसएमई का समर्थन दे रहे हैं। विश्व बैंक की सहायता से लगभग छह हजार करोड़ रुपये की आरएएमपी योजना शुरू की गई है। यह राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर डायरेक्ट मार्केट एक्सेस, ऋण उपलब्धता, संस्थानों को मजबूत कर एमएसएमई ईको सिस्टम के विकास में मददगार साबित हो रही है। एमएसएमई को ऋण का प्रवाह बढ़ाने के लिए क्रेडिट गारंटी योजना को और नया रूप दिया गया है। वार्षिक गारंटी शुल्क घटाकर 0.37 प्रतिशत कर दिया गया है और गारंटी की सीमा 2 करोड़ रुपये से बढ़ा कर पांच करोड़ रुपये कर दी गई है। आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना को साकार करने में भी एमएसएमई सेक्टर का भारी योगदान है। आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना अनिवार्य रूप से रोजगार सृजन से जुड़ी हुई है।
रोजगार सृजन के लिए प्राइम मिनिस्टर एम्प्लॉयमेंट जेनरेशन प्रोग्राम में व्यापक बदलाव किए गए हैं। इसमें सेवा क्षेत्र के साथ एमएसएमई के अन्य प्रोजेक्ट भी शामिल किए गए हैं। इस योजना के माध्यम से अब तक लगभग नौ लाख उद्यमों को आर्थिक मदद देकर 72 लाख से अधिक रोजगार सृजित किए गए हैं। वर्ष 22-23 में 2434 करोड़ रुपये वितरण का लक्ष्य था, जबकि लक्ष्य को पार कर 2722 करोड़ रुपये की मार्जिन मनी वितरित की गई। रोजगार सृजन का ही एक हिस्सा है, पीएम विश्वकर्मा योजना का शुभारंभ। यह न सिर्फ रोजगार सृजन, बल्कि हाशिये पर जा चुकी भारतीय पारंपरिक कला, शिल्प और दूसरी युक्तियों को पुनर्जीवित करने और विश्व पटल पर उनकी महत्ता स्थापित करने की महत्वाकांक्षी योजना है। इस योजना के तहत विश्वकर्मा भाई-बहनों को 18 प्रकार के उद्यमों की ट्रेनिंग, टूल किट और बिना गारंटी ऋण उपलब्ध कराए जाएंगे। प्रधानमंत्री के मार्गदर्शन में तैयार की गई योजना विश्वकर्मा भाई-बहनों के लिए गेम चेंजर साबित होगी। इस योजना के तहत अभी तक 77 लाख से अधिक लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया है, जो लक्ष्य के दुगने से अधिक है। सरकार की योजना इनके उत्पादों को घरेलू और वैश्विक बाजार तक पहुंचाने में सहयोग प्रदान करना है।
स्पष्ट है कि खादी के अलावा एमएसएमई के दूसरे सेक्टर का भी भारत के कुल निर्यात में महत्वपूर्ण हिस्सा है। सरकार निर्यात में इनकी हिस्सेदारी और बढ़ाने का प्रयास कर रही है। एमएसएमई उत्पादों को अंतररष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचाने के लिए विभिन्न अंतररष्ट्रीय मेलों में भाग लेने का अवसर प्रदान किया जाता है। उद्यमों द्वारा उत्पादित माल और सेवाएं विश्व बाजार में भारत की पहचान बनाते हैं, जिससे देश के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि होती है।इसके अलावा एमएसएमई उत्पादों और सेवाओं के लिए जेम पोर्टल जैसे ऑनलाइन बाजार का गठन किया गया है, जो सरकारी खरीद में भाग लेने का अवसर प्रदान करते हैं।
एमएसएमई सेक्टर को पर्यावरण चुनौतियों से निपटने में भारत की प्रतिबद्धता के भी अनुरूप बनाया जा रहा है। एमएसएमई को जीरो इफेक्ट बनाने और जीरो इफेक्ट को अपनाने हेतु प्रेरित और प्रोत्साहित करने के लिए जेड सर्टिफिकेट योजना शुरू की गई है। जेड सर्टिफिकेट योजना को महिला सशक्तीकरण से भी जोड़ा गया है। महिलाओं के स्वामित्व वाले एमएसएमई को जेड सर्टिफिकेट मुफ्त दिया जाता है। कुल मिलाकर एमएसएमई आर्थिक समानता लाने का महत्वपूर्ण प्रयास है। इस एक योजना से रोजगार सृजन, औद्योगिक विकास, निर्यात में वृद्धि और समावेशी विकास के माध्यम से देश के समग्र विकास की संकल्पना को साकार किया जा रहा है। स्पष्ट है कि एमएसएमई को उचित समर्थन और प्रोत्साहन दिया जाए, तो भारत तीव्र गति से विकास के लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकता है और एक समृद्ध और समावेशी समाज की ओर अग्रसर हो सकता है।