नई दिल्ली, 9 दिसंबर (हि.स.)। सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के लिए भी शादी की उम्र 18 साल किए जाने की मांग पर सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है। यह याचिका राष्ट्रीय महिला आयोग ने दाखिल की है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत प्यूबर्टी या 15 साल की उम्र में लड़की का विवाह किया जा सकता है। इससे पहले 17 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट 18 साल से कम उम्र की मुस्लिम लड़की को निकाह की अनुमति देने के पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई को तैयार हो गया था। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा था कि हम मामले का परीक्षण करेंगे।
दरअसल, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें हाई कोर्ट ने 16 साल की मुस्लिम युवती की शादी को कानूनी तौर पर वैध करार दिया था। हाई कोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के आधार पर शादी को वैध करार दिया था। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग का कहना है कि यह फैसला बाल विवाह निषेध कानून 2006 के विपरीत है। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ के आधार पर इस शादी को वैध करार देते हुए एक मुस्लिम जोड़े को सुरक्षा प्रदान की थी।
दरअसल, ये मामला कई कानूनी पचड़ों में उलझा हुआ है। पॉक्सो एक्ट के तहत 18 साल के कम उम्र की लड़की से शारीरिक संबंध बनाना अपराध है, भले ही वह लड़की की सहमति से बनाया गया हो। शादी से जुड़े अधिकतर कानूनों में भी लड़की की शादी की उम्र 18 वर्ष रखी गई है। हालांकि मुस्लिम पर्सनल लॉ में यौवन अवस्था (puberty) हासिल कर चुकी लड़की के विवाह को सही माना गया है।