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कलाम के अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर कमाल कर गए मोदी

मुकुंद

भारत आज (2022) दुनिया की पांचवीं अर्थव्यवस्था बन चुका है। यह मील का पत्थर है। इससे बड़ी लकीर खींच पाना फिलहाल किसी के लिए भी मुश्किल है। इस पर मीन-मेख निकालने वाले भले ही चाहे जो कहें पर यह स्वप्न देश के पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की आंखों ने मृत्यु से कुछ माह पहले साल 2015 में 'बियॉन्ड 2020' में देख लिया था। 'बियॉन्ड 2020' उनकी लिखी चर्चित किताब है। इसमें उन्होंने देश की प्रगति का आकलन किया था। कलाम को पक्का यकीन था कि युवा पीढ़ी के दम से भारत 2020 तक विकसित देश बन जाएगा। यही नहींए 2020 तक भारत विश्व की चार बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा और देश की प्रति व्यक्ति आय 1,540 डॉलर होगी। इसलिए यह किताब मौजूं भी है।

अगर दुनिया और देश में कोरोना ने कोहराम न मचाया होता तो यकीन मानिये भारत यह करिश्मा 2020 में जरूर दिखा देता। इस उपलब्धि में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वपूर्ण भूमिका को तमाम आलोचनाओं के बावजूद खारिज नहीं किया जा सकता। आर्थिक मोर्चे पर इस उपलब्धि ने भारत को वैश्विक मंच पर आसीन कर सरकार के आलोचकों की जुबान बंद कर दी है। जिस युवा पीढ़ी पर कलाम भरोसा करते थे, उसी पीढ़ी को फलक पर मोदी बैठा रहे हैं।

अपनी इस किताब में कलाम कहते हैं- "ये कभी मत सोचो कि आप अकेले अपने देश के लिए कुछ नहीं कर सकते। आप जिस भी क्षेत्र में काम कर रहे हो आप अपनी काबिलीयत बढ़ाएं। सभी की कोशिशों से ही भारत विकसित देश बन सकता है।" डॉ. कलाम के अनुसार विकसित देश होने का मतलब है देश की पांच बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार होना। रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होना और कृषि, मैन्युफैक्चरिंगऔर सर्विस सेक्टर में अधिक काबिल हो कर उभरना। विकसित का मतलब है अधिक कार्यकुशल युवाओं के लिए देश में रोजगार के अधिक अवसर पैदा कर सकना। आज अपने इस सपने को साकार होता वो खुद तो नहीं देख रहा, पर सारी दुनिया इसकी गवाह बन रही है। देश साक्षी बन रहा है। इस सबके बीच आर्थिक परिदृश्य की संभावित सकारात्मक छवियों को गढ़ता अगर कोई नजर आ रहा है तो वह हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी।

डॉ. कलाम के साकार हुए इस स्वप्न को जिक्र करने का मकसद सिर्फ इतना है कि शनिवार को उनकी जयंती है। देश भर में अनगिनत आयोजन होंगे। उनकी विज्ञान दृष्टि पर तमाम बातें होंगी पर उनके आर्थिक दृष्टिकोण पर शायद ही चर्चा हो। इसलिए इस मौके पर इस महान अंतरिक्ष वैज्ञानिक के आर्थिक नजरिये को नजरअंदाज करना नाइंसाफी होगी। उनकी दूरदृष्टि का लोहा आज सारा देश मानता है। उन्होंने बदलते विश्व के स्वरूप पर एक बार चेताया था कि अब जमीन पर लड़े जाने वाले परंपरागत तरीके के युद्ध नहीं होंगे। अब युद्ध धरती के अलावा जल एवं आकाश या अंतरिक्ष में भी हो सकते हैं। वह साइबर युद्ध की तरह अदृश्य भी हो सकते हैं। इसलिए भारत को उन परिस्थितियों से निपटने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। अब इससे कौन इनकार कर सकता है कि उनकी कही गई बात बेदम है। यह अच्छी बात है देश ने इस नसीहत को शिरोधार्य करते हुए उस चुनौती का मुकाबला करने की क्षमता भी ‘‘मिशन शक्ति’’ के जरिए हासिल की है।

15 अक्टूबर, 1931 को तमिलनाडु के रामेश्वरम में सामान्य परिवार में जन्मे कलाम का जीवन अभावों से भरा रहा। मुश्किल हालात में पढ़-लिखकर वह वैज्ञानिक बने। डीआरडीओ और इसरो के कई महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट्स को कामयाब बनाया। उनके नेतृत्व में भारत में स्वदेशी मिसाइलें और सैटेलाइट्स बनाए गए। कुछ वक्त तक रक्षामंत्री और 1999 से 2001 के बीच भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार रहे। एक दिन वह भी आया जब देश के ग्यारहवें राष्ट्रपति बने। अपने जीवनकाल में 30 से ज्यादा किताबें लिखने वाले डॉ. कलाम बच्चों और युवाओं के बीच सबसे ज्यादा लोकप्रिय रहे हैं।

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