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अब दोहरे मोर्चे पर उलझे पुतिन

डॉ. प्रभात ओझा रूस में सैन्य विद्रोह हो गया। यह तथ्य अर्द्धसत्य हो सकता है। इसलिए कि विद्रोही 'वैगनर' लड़ाके रूस के पूर्णरूपेण सैनिक नहीं हैं। 'वैगनर' प्राइवेट आर्मी है। खास बात यह कि यूक्रेन युद्ध में यह रूस की ओर से मोर्चे पर थी। इसका चीफ येवगेनी प्रिगोझिन है। वह राष्ट्रपति पुतिन का नजदीकी रहा है। उसे उनका रसोइया भी कहा जाता है। रसोइया ही अब जान का दुश्मन बन गया। उसे नाटकीय ढंग से मनाया गया। 'वैगनर' ने विद्रोह किया। लड़ाके राजधानी मास्को की ओर बढ़े। ...और कुछ नजदीक तक पहुंचते कि उससे पहले ही उनके प्रमुख ने वापस लौटने का फरमान सुना दिया। यह कुल 36 घंटों से भी कम समय में हुआ। इस अवधि में दुनियाभर की निगाहें रूस पर टिक गईं कि राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन का अब क्या होगा। यह सवाल तो आगे भी कायम रहने की उम्मीद है कि पुतिन का क्या होगा। अभी हाल में रूसी संविधान में हुए बदलाव के मुताबिक वे आजीवन राष्ट्रपति बने रह सकते हैं, पर यह तो सामान्य व्यवस्था है। जो कुछ हुआ है, वह सामान्य नहीं है। शुक्रवार रात और शनिवार देरशाम तक इस विद्रोह को तख्तापलट की कोशिश बताया गया।

 रूस में तख्तापलट नहीं हो सकता, ऐसा मानने वाले बहुत हैं। ऐसे लोगों को याद करना होगा कि विद्रोह के तौर पर तख्तापलट भले न हो, किंतु 1989 में जब सोवियत संघ कमजोर पड़ रहा था, ब्रेझनेव के खिलाफ भी विद्रोह हुआ था। तत्कालीन सोवियत संघ के 15 गणराज्य अपनी आजादी मांग रहे थे। मिखाइल गोर्वाचेव डाचा में छुट्टियां मना रहे थे और इधर मास्को की सड़कों पर टैंक दौड़ने लगे थे। बोरिस येलत्सिन निर्वाचित राष्ट्रपति थे। उन्होंने नाटकीय तरीके से एक टैंक पर खड़े होकर शांति की अपील की थी। एक दिन बाद ब्रेझनेव राजधानी लौटे थे। इस घटना के बाद ब्रेझनेव का अवसान और येलत्सिन का उदय इतिहास की कड़ी है। तब धीरे-धीरे सोवियत संघ बिखरने लगा था। कुछ ही समय बाद 1993 में येलत्सिन को भी विद्रोह झेलना पड़ा। धुर वामपंथियों और कथित राष्ट्रवादियों के बीच विवाद संघर्ष की नौबत तक पहुंच गया। तब 21 सितंबर को उपराष्ट्रपति अलेक्जेंटर रित्सकोव को सत्ता सौंपने की मांग की गई थी। मेयर ऑफिस और टेलीविजन केंद्र पर विद्रोहियों का कब्जा हो चुका था। येलत्सिन के आदेश पर संसद के बाहर टैंकों ने गोले बरसाये थे। आधिकारिक तौर पर 148 और गैर अधिकृत सूत्र मारे गये लोगों की संख्या एक हजार से भी अधिक बताते हैं। सोवियत संघ के बिखराव की कहानी अब पुरानी हो चुकी है। 


ताजा विद्रोह के बाद इस तरह की कहानियों ने नया रूप ले लिया है। सोवियत संघ के बिखराव के बाद सर्वाधिक शक्तिशाली रूस भी एक बार लाचार दिखने लगा है। यह विद्रोह ऐसे समय हुआ है, जब रूस 16 महीने से भी अधिक समय से यूक्रेन से जूझ रहा है। इस संघर्ष में प्राइवेट आर्मी के तौर पर 'वैगनर' के मुखिया येवगेनी प्रिगोझिन ने रूस और उसके राष्ट्रपति पुतिन का साथ दिया। यूक्रेन के बखमुत शहर सहित कई प्रमुख ठिकानों पर कब्जे में प्रिगोझिन ने अहम भूमिका निभाई। फिर प्रश्न है कि पुतिन के 'करीबी' प्रिगोझिन ने विद्रोह की सीमा तक जाकर यहां तक क्यों कह दिया कि अब रूस को नया राष्ट्रपति मिलने जा रहा है। शुरू में उसने कहा था कि उसका अभियान तख्तापलट नहीं है। कभी मारपीट, डकैती और धोखाधड़ी जैसे मामलों में 13 साल की सजा काट रहे प्रिगोझिन को नौ साल बाद रिहा कर दिया गया था। उसने सेंट पीटर्सबर्ग में हॉट डॉग बेचने का काम शुरू किया। धंधा इतना चला कि उसने महंगा रेस्तरां खोल लिया। यह इतना लोकप्रिय हो गया कि पुतिन भी अपने मेहमानों के साथ इस रेस्तरां में आने लगे। यहीं से प्रिगोझिन को 'पुतिन का रसोइया' भी कहा जाने लगा। अब यह रसोइया 'पुतिन का दुश्मन' बना दिखाई देता है। पुतिन का यह रसोइया और उसका 'वैगनर' ग्रुप 2017 के बाद से माली, सूडान, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, लीबिया और मोजाम्बिक में सैन्य दखल के साथ प्रभावी रहे हैं। अब ये संसाधन संपन्न देशों में खदान और भूमि के पट्टे ले रहा है। वर्ष 2022 की इनिशिएटिव अगेंस्ट ट्रांसनेशनल ऑर्गनाइज्ड क्राइम की एक रिपोर्ट के अनुसार 'वैगनर' अफ्रीकी देशों में सबसे प्रभावशाली रूसी समूह बन गया है। कहते हैं कि प्रिगोझिन की महत्वाकांक्षा रूस में भी बलवती हो उठी है।

 शुरू में उसकी शिकायत रूस के रक्षा मंत्री और वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों से थी कि उसके ग्रुप को युद्ध में अग्रिम मोर्चे पर रहने के बावजूद पर्याप्त साज-ओ-सामान नहीं मिलता। इसकी शिकायत उसने बार-बार राष्ट्रपति पुतिन से भी की। बहरहाल, रूस अब पहले जैसा रहस्यमयी गोपनीय देश नहीं रहा। कई तरह की रिपोर्ट आ रही हैं। इस विद्रोह में नॉटो और अमेरिका की सीधी भूमिका देखना बेमानी होगा, किंतु अमेरिका का अफ्रीकी देशों में 'वैगनर' के गोल्ड माइनिंग की खुदाई पर प्रतिबंध की मांग पर ढीला पड़ना सवाल खड़े करता है। जो भी हो, प्रिगोझिन ने पुतिन को चिंता में डाल दिया है। अभी उनके करीबी बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंकों ने प्रगोझिन को वापस लौटने के लिए मना लिया है। कहते हैं कि वह लौटकर बेलारूस ही पहुंचेगा, परन्तु रूस में वह युद्ध के बीच कई तरह के संदेश छोड़ गया है। प्रमुख बात है कि युद्ध के खिलाफ आम लोग पहले से ही रहे हैं, कहीं इस विद्रोह के बाद उनमें विरोध के स्वर तेज हो सकते हैं। (लेखक, हिन्दुस्थान समाचार से संबद्ध रहे हैं।)
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