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सात समंदर पार से अपनों के लिए उमड़ता प्यार

अब लगभग हर रोज मीडिया में भारत से बाहर बसे भारतीयों की उल्लेखनीय उपलब्धियों पर खबरें होती हैं। विश्व बैंक का अध्यक्ष बनने से लेकर किसी देश का राष्ट्राध्यक्ष, प्रधानमंत्री, सांसद वगैरह बन रहे हैं भारतीय। बात यहां तक ही सीमित नहीं है। संसार के कोने-कोने में रहने वाले भारतीयों ने अपने देश के खजाने को अपने पैसे से लबालब भर दिया है। रिजर्व बैंक के फरवरी, 2023 तक के आंकड़े बता रहे हैं कि रिजर्व बैंक का एनआरआई डिपाजिट 136 अरब रुपये हो चुका है। एनआरआई का मतलब है नॉन रेजीडेंट इंडियन (अप्रवासी भारतीय) है। साफ है लगभग तीन करोड़ भारतवंशी तथा एनआरआई अपने वतन को खुशहाल करने का ठोस काम कर रहे हैं। इसलिए यह समझना गलत होगा कि वे सात समंदर जाते ही भारत को भूल जाते हैं। ऐसा नहीं है। वे कहीं भी चले जाएं, पर रहते भारतीय ही हैं। 

उनकी पहचान भारतीय के रूप में होती है। वे भी गर्व करते हैं कि उन्हें कई पीढ़ियों बाद भी भारतीय ही माना जाता है। एक बार केन्या के हॉकी के महान खिलाड़ी अवतार सिंह सोहल बता रहे थे कि अफ्रीका में 125 से भी ज्यादा सालों से भारतीय बसे हुए हैं। अब वहां उनकी चौथी-पांचवीं पीढ़ी आबाद है। अफ्रीका से अनेक भारतीय परिवार यूरोप, कनाडा, अमेरिका वगैरह भी जाकर बस गए। पर वे जहां भी जाते हैं खुद को भारतीय ही बताते हैं। सोहल ने केन्या का चार ओलंपिक खेलों में प्रतिनिधित्व किया है। उन्होंने चंडीगढ़ में एक फ्लैट भी खरीदा है। कुछ अफ्रीकी देशों में बसे भारतीय कहते हैं कि अगर कभी संकट पैदा हुआ तो वे भारत का रुख कर सकते हैं। इसलिए वे भारत में भी अपनी संपत्ति रख लेते हैं। देश की मजबूत आर्थिक सेहत में उन अनाम भारतीयों का भी कम बड़ा योगदान नहीं है जो हर साल भारत पैसा भेजते हैं। 

आमतौर पर मीडिया में उन्हीं की चर्चा होती है जो बड़े इनवेस्टर होते हैं। कोई भी राज्य जब अपने यहां निवेश आमंत्रित करता है तो उसकी निगाह बड़ी कंपनियों पर ही रहती है। मानता हूं कि उनका निवेश भी जरूरी होता है पर अगर अपने देश के नागरिक ही अपने देश में निवेश करें तो आनंददायक रहता है। असल बात यह है कि देश में पैसा आना चाहिए। वह चाहे अमेरिका की सिलिकॉन वैली में काम करने वाले भारतीय आईटी इंजीनियर भेज रहे हों या फिर दुबई या खाड़ी के किसी भाग में काम करने वाले कुशल-अकुशल मजदूर। यह तो सबको पता ही है कि भारत के बाहर से पैसा आने से देश में इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर करना संभव हो पाता है। मगर यह भी ध्यान रखा जाए कि भारतवंशियों या एनआरआई के लिए भारत एक भौगोलिक वास्तविकता मात्र नहीं है। सिखों के लिए भारत उनका गुरुघर है। यही स्थिति बौद्धों और जैन धर्मावलम्बियों के साथ भी हैI सनातनी हिंदुओं को तो भारत के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता है। मुसलमानों की निष्ठा भी भारत को लेकर असंधिग्ध है। 

भारत का आम मुसलमान पाकिस्तान के नाम पर तौबा करता है। कुछ मुसलमान जरूर अब भी वक्त के साथ बदलने को तैयार नहीं हैं। ईद से पहले दिल्ली, मुंबई या केरल के किसी एयरपोर्ट पर खाड़ी के देशों से वापस आते हजारों मुसलमान मिलते हैं। ये सब अपने घर वालों और ईष्ट मित्रों के साथ ईद मनाने आ रहे होते हैं। भारतीय अफ्रीका, कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन वगैरह में बसने के बाद भी अपने को भारत से दूर नहीं कर पाते। वह वहां अपनी संस्कृति और सांस्कृतिक थाती को संजोये रहते हैं। दीवाली और होली, शादी समारोह आदि अवसरों पर भारतीय महिलाएं आमतौर पर साड़ी ही पहनती हैं। घरों में ज्यादातर भारतीय व्यंजन ही पकते हैं। मारीशस के भारतवंशी अगर धाराप्रवाह फ्रेंच और क्रियोल भाषा बोलते है, तो ईस्ट अफ्रीका के भारतीय स्वेहली में पारंगत होते हैं। 

लेकिन, वे अपने पुरखों की भाषा भोजपुरी और उसके लोकगीतों को कभी छोड़ते नहींI बेशक, यह सभी भारतवंशी सही मायने में हमारे ब्रांड एंबेसेडर हैं। इसलिए इनके हितों को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों को हमेशा नई-नई योजनाओं को लाते रहना चाहिए। उन्हें उनके निवेश पर बेहतर रिटर्न भी दिया जाए, ताकि वे अधिक से अधिक धन देश में भेजते रहें। यह भारत के लिए बहुत आदर्श समय है। सारी दुनिया मंदी की मार को झेल रही है तो हमारे यहां कुल मिलाकर शांति है। काम-धंधे सही से चल रहे हैं। हमारे यहां भी मणिपुर की जातीय दंगों जैसी घटनाएं भी नहीं होनी चाहिए। जरा पड़ोसी पाकिस्तान की हालत देख लें। वहां पर तो गृहयुद्ध जैसे हालात बने हुए हैं। बहरहाल, भारत को अपनी आर्थिक स्थिति को लगातार मजबूत करते रहना होगा। अब तो सारी दुनिया भी उसी का सम्मान करती है जिसकी माली हालत सही होती है।
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