Logo
Header
img

बिलकिस बानो ने गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट में लगाई पुनर्विचार याचिका

नई दिल्ली, 30 नवंबर (हि.स.)। बिलकिस बानो ने गैंगरेप मामले में सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की है। याचिका में मांग की गई है कि 13 मई के आदेश पर दोबारा विचार किया जाए। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि वे पुनर्विचार याचिका को देखने के बाद लिस्ट करने पर विचार करेंगे। आज बिलकिस बानो की ओर से वकील शोभा गुप्ता ने चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष इस याचिका को मेंशन करते हुए सुनवाई की मांग की। उसके बाद कोर्ट ने याचिका को देखने के बाद लिस्ट करने पर विचार करने को कहा। 13 मई के आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि गैंगरेप के दोषियों की रिहाई में 1992 में बने नियम लागू होंगे। इसी आधार पर 11 दोषियों की रिहाई हुई है। 21 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमन की ओर से दाखिल याचिका को मुख्य याचिका के साथ टैग करने का आदेश दिया था। याचिका में गुजरात सरकार के दोषियों की रिहाई के आदेश तत्काल रद्द करने की मांग की गई है। 17 अक्टूबर को गुजरात सरकार ने हलफनामा दाखिल कर कहा था कि बिलकिस बानों गैंगरेप केस के दोषियों को उनकी सजा के 14 साल पूरे होने और उनके जेल में अच्छे व्यवहार की वजह से रिहा किया गया। दोषियों की रिहाई केंद्र सरकार की अनुमति के बाद की गई। गुजरात सरकार ने कहा था कि दोषियों की रिहाई का फैसला कैदियों को रिहा करने के सुप्रीम कोर्ट के 9 जुलाई, 1992 के दिशानिर्देश के आधार पर किया गया है न कि आजादी के अमृत महोत्सव की वजह से। गुजरात सरकार ने कहा कि बिलकिस बानो के दोषियों की समय से पहले रिहाई का एसपी, सीबीआई , सीबीआई के स्पेशल जज ने विरोध किया था। 24 सितंबर को बिलकिस बानों गैंगरेप केस के दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल किया था। जवाब में कहा गया था कि गुजरात सरकार का उनकी रिहाई का फैसला कानूनी तौर पर ठीक है। उनकी रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता सुभाषिनी अली और महुआ मोइत्रा का केस से कोई संबंध नहीं है। आपराधिक केस में तीसरे पक्ष के दखल का कोई औचित्य नहीं बनता है। दोषियों के जवाब में कहा गया था कि उनकी रिहाई के खिलाफ न तो गुजरात सरकार ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और न ही पीड़ित ने। यहां तक कि इस मामले के शिकायतकर्ता ने भी कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटाया है। ऐसे में कानून की स्थापित मान्यताओं का उल्लंघन होगा।
Top